नई दिल्ली : विख्यात लेखिका अरुंधती रॉय ने दिल्ली में टीकरी बार्डर स्थित किसान आन्दोलन के संयुक्त मोर्चा से अपनी बात कही. उन्होंने कहा, मै यहाँ बहुत पहले इसलिए नहीं आई कहीं सरकार आपको आतंकवादी, नक्सलवादी न करार दे. ऐसा मेरे साथ पहले कई बार हो चुका है.
मैं नहीं चाहती थी कि जो कुछ मुझे कहा जाता रहा है वह आपको भी कहा जाये, जैसे कि टुकड़े-टुकड़े गैंग, खान मार्केट गैंग, माओवादी वगैरा. मुझे आशंका थी कि कहीं गोदी मीडिया द्वारा ये नाम आप पर भी न थोप दिये जायें. लेकिन आपका नामकरण तो उन्होंने पहले ही कर दिया.
उन्होंने कहा, इस आन्दोलन को हराया नहीं जा सकता क्योंकि यह जिंदादिल लोगों का आन्दोलन है. आप हार नहीं सकते. पूरा देश देख रहा है कि लड़ने वाले दिल्ली तक आ गये हैं और ये लोग हारने वाले लोग नहीं हैं. उन्होंने कहा, जो कुछ हम पिछले 20 सालों से लिख रहे थे, अखबारों और किताबों में पढ़ रहे थे; इस आन्दोलन ने उसे एक ज़मीनी हकीकत बना दिया है. इस आन्दोलन ने देश के एक-एक आदमी, एक-एक औरत को समझा दिया है कि आखिर इस देश में हो क्या रहा है.
हर चुनाव से पहले ये लोग आपके साथ खड़े होते हैं, आपसे वोट मांगते हैं और चुनाव खत्म होते ही ये सीधे अम्बानी, अडानी, पतंजलि और बड़ी-बड़ी कम्पनियों के साथ जाकर खड़े हो जाते हैं. आज़ादी के बाद 60 के दशक में लोग जमींदारी खत्म करने और मजदूरों के हक के लिये आन्दोलन कर रहे थे, लेकिन ये सब आन्दोलन कुचल दिये गये. जो आज आपके साथ हो रहा है वह आदिवासियों के साथ बहुत पहले से शुरू हो गया था.
बस्तर में नक्सली और माओवादी क्या कर रहे हैं, क्यों लड़ रहे हैं? वे लड़ रहे हैं क्योंकि वहां आदिवासियों की ज़मीन, पहाड़ और नदियाँ बड़ी-बड़ी कम्पनियों को दिये जा रहे हैं. उनके घर जला दिये गये. उन्हें अपने ही गाँवों से बाहर निकाल दिया गया. गाँव के गाँव खत्म कर दिये गये.
अब वे किसान के साथ भी वही खेल खेलने जा रहे हैं. आज इस आन्दोलन में देश का किसान भी शामिल है और मजदूर भी. इस आन्दोलन ने देश को एकता का अर्थ समझा दिया है. इस सरकार को सिर्फ दो काम अच्छे से करने आते हैं, एक लोगों को बांटना और फिर बांट कर उन्हें कुचल देना. बहुत कोशिशें की जा रही हैं इस आन्दोलन को तोड़ने, बांटने और खरीदने की.
सरकार ने तो साफ़-साफ़ बता दिया है कि कानून वापस नहीं लिये जायेंगे और आपने भी साफ़ कर दिया है कि आप वापस नहीं जायेंगे. आगे क्या होगा, कैसे होगा, इसे हमें देखना होगा. सरकार को अच्छा लगता है जब महिलायें, महिलाओं के लिये, किसान, किसानों के लिये, मजदूर, मजदूरों के लिये लड़ते हैं, लेकिन जब सब एक साथ हो जाते हैं तो उनके लिए बहुत बड़ा खतरा खड़ा हो जाता है. जैसा आन्दोलन आप कर रहे हैं इस तरह का आन्दोलन आज दुनिया में कहीं भी नहीं हो रहा.
उनके पास सिर्फ अम्बानी, अडानी या पतंजलि ही नहीं हैं बल्कि इनसे भी ज्यादा खतरनाक चीज़ हैं गोदी मीडिया. अकेले अम्बानी के पास 27 मीडिया चैनल हैं. वे भला हमें क्या खबर देंगे. मीडिया में सिर्फ और सिर्फ कोर्पोरेट का विज्ञापन है. वे हमें ख़बरें नहीं देंगे बल्कि हमें सिर्फ गालियाँ और अजीब-अजीब नाम देंगे.
अब आप को भी समझ आ गया है कि आपके आन्दोलन में मीडिया का क्या रोल है. यह बहुत खतरनाक है. ऐसा मीडिया दुनिया में कहीं नहीं है. जब देश में कोरोना आया तो इसी मीडिया ने मुसलमानों के साथ क्या-क्या नहीं किया? कितना झूठ बोला गया, कोरोना जिहाद, कोरोना जिहाद करकर के. अब आपके साथ भी वही काम शुरू करने की कोशिश की जा रही है.
यह सरकार जो भी कानून लाती है रात को ही लाती है. नोटबंदी आधी रात को, जीएसटी बिना बातचीत के, लॉकडाउन महज चार घंटे के नोटिस पर और किसानों के लिए जो क़ानून बनाये वे भी किसी से कोई बातचीत किये बिना. किसी से भी कोई बातचीत नहीं की गई. पहले ऑर्डिनेंस ले आये अब कहते हैं बातचीत कर लो. सारे काम उलटे तरीकों से हो रहे हैं. बात सिर्फ इन तीन कानूनों की नहीं है यह एक व्यापक लड़ाई है. अभी सरकार को ये क़ानून वापस लेने ही होंगे. यह आन्दोलन हारने वाला नहीं है.