संघ नेता भैयाजी जोशी का बेतुका बयान
नई दिल्ली : केंद्र सरकार की ओर से लाए गये तीन नए कृषि कानून के खिलाफ देशभर के किसान दिल्ली से सटे बॉर्डर पर पिछले डेढ़ महिने से ज्यादा समय से डटे हुए हैं. किसानों के इस आंदोलन को विपक्षी दलों, अभिनेता, कलाकार, साहित्यिक और सामाजिक संगठनाओं सहित कई वर्ग का समर्थन मिल रहा है. इस बिच किसान आंदोलन को लेकर संघ के नेता भैयाजी जोशी ने बेतुका बयान दिया हैं. जोशी ने कहा की किसान आंदोलन को पूरे देश से कोई समर्थन नहीं मिल रहा हैं. द इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने यह बात कहीं.
जोशी ने कहा कि किसान आंदोलन को पूरे देश से कोई समर्थन नहीं मिल रहा. गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो किसान कृषि कानून के समर्थन में बोल रहे हैं. आंदोलनकारी किसानों में भी कुछ इसके समर्थन में हैं. हालांकि उनकी यह बात सच नहीं हैं.
केवल भाजपा और संघ से जुडे संगठन ही किसाना आंदोलन का विरोध कर रहे हैं. यही वजह है की संघ से जुडा किसान संगठन इस आंदोलन में शामिल नहीं हैं. केवल उनके संगठन से जुडे किसान ही इस आंदोलन का विरोध कर रहे हैं. जोशी यह भी कहा की इस तरह किसी आंदोलन का इतना लंबा चलना समाज की सेहत के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है.
जोशी ने कहा कि दोनों पक्षों को विवाद सुलझाने के लिए बीच का कोई रास्ता निकालना होगा. उन्होंने आंदोलन के जल्द खत्म होने की मंशा भी दोहराई. उन्होंने कहा, लोकतंत्र दोनों पक्षों को मौके देता है. मुझे लगता है कि दोनों पक्ष अपनी जगह पर ठीक हैं. आंदोलनकर्ताओं को बातचीत से जो भी मिल रहा है, उन्हें उसे मान लेना चाहिए. सरकार को भी सोचना चाहिए कि वह और ज्यादा क्या दे सकती है. आंदोलन चलते हैं और खत्म भी होते हैं. इसलिए किसी आंदोलन को अपनी जगह देखनी चाहिए, सरकार को भी अपनी जगह की पहचान होनी चाहिए.
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उन्होंने इंटरव्यू में आगे कहा, यह जरूरी है कि दोनों पक्ष कुछ बिंदुओं पर सहमत हों, जिससे आंदोलन खत्म हो सके. कोई भी लंबा खिंचने वाला आंदोलन फायदेमंद नहीं होता। किसी को भी चल रहे प्रदर्शनों से परेशानी नहीं होनी चाहिए. लेकिन एक मध्यमार्ग निकालना जरूरी है. जोशी ने आगे कहा, आंदोलन से कभी भी इनसे जुड़े लोगों पर असर नहीं होता, पर इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर समाज पर असर पड़ता है.
यह समाज की सेहत के लिए अच्छा नहीं है कि कोई आंदोलन इतना लंबा चले. इसलिए दोनों पक्षों का हल निकालना जरूरी है. अगर कभी कोई चर्चा होती है तो यह बात नहीं कही जा सकती कि हमारी बात पर चर्चा नहीं हो सकती। सरकार लगातार कह रही है कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं, पर प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कोई भी बातचीत तभी होगी, जब तीनों कानूनों को वापस लिया जाएगा. आखिर ऐसे में बात कैसे होगी?
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संघ सरकार्यवाह से जब पूछा गया कि सरकार मुद्दे को खत्म करने के लिए क्या कर सकती है, तो उन्होंने कहा, यह सरकार के सोचने की बात है. लेकिन अगर ऐसे कुछ और मुद्दे हैं, जिनका हल जरूरी है, तो सरकार को यह करना चाहिए. मुझे लगता है कि इन मामलों को संवेदनशीलता के आधार पर सुलझाना चाहिए. पर मुझे नहीं लगता कि किसी भी देश में इस तरह का कानून वापस लिया जाता है. अगर कुछ सकारात्मक सुझाव हैं, तो सरकार को उनके बारे में सोचना चाहिए. हम सिर्फ आंदोलन को खत्म होते देखना चाहते हैं.
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