नई दिल्ली : नई दिल्ली में मंगलवार को किसानों की ट्रैक्टर परेड में जमकर बवाल हुआ. इस दौरान लाल किले परिसर में प्रदर्शनकारी किसान और दिल्ली पुलिस का एक जवान के बिच भीडत होने की खबर है. झंडा लगाने के लिए लाल किले के गुंबद पर चढ़ते हुए प्रदर्शनकारी और पुलिस की भिंड़त के दौरान पुलिस द्वारा आसू गैस छोड़ी गई.
कहा जा रहा हैं की दिल्ली पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसी गणतंत्र दिवस पर आंदोलनरत किसानों की ट्रैक्टर परेड को इजाजत देने के खिलाफ थीं. गृह मंत्रालय की ओर से बुलाई गई कुछ पिछली बैठकों में इस बात की आशंका जताई गई थी कि अगर दिल्ली में किसानों को आने की अनुमति दी गई, तो हालात बिगड सकते हैं.
सरकार को आशंका था कि अगर उसने किसानों को एंट्री नहीं दी तो किसान और कोई कदम उठा सकते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने दिल्ली में ट्रैक्टरों और किसानों की एंट्री को मंजुरी दी. मंगलवार को दिल्ली के बॉर्डर्स से लेकर आईटीओ और लाल किला पर किसानों के ट्रैक्टर मार्च में शामिल प्रदर्शनकारियों ने जबरदस्त बवाल काटा.
इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मसले पर उच्च स्तरीय बैठक भी तब बुलाई, जब हालात बिगड़ रहे थे. शाम साढ़े चार बजे अपने आवास पर शाह ने गृह मंत्रालय, दिल्ली पुलिस और आईबी के शीर्ष अधिकारियों के साथ यह मीटिंग की. यह मीटिंग करीब डेढ़ घंटे चली. जिसमें उन्होंने सुरक्षा के इंतजामातों का जायजा लिया और आगे के ऐक्शन पर चर्चा की, ताकि तनाव कम किया जा सके.
बवाल के बाद दिल्ली में अतिरिक्त पैरामिलिट्री बल की तैनाती के साथ दिल्ली के कुछ इलाकों में इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई. सूत्रों ने बताया कि सीआरपीएफ की पांच अतिरिक्त कंपनियां दिल्ली पुलिस की मदद के लिए तैनात की गईं.
सुत्रो के अनुसार सुरक्षाबल किसानों की भारी संख्या देख घबरा गए गए थे. एक अधिकारी के मुताबिक, लगभग एक लाख प्रदर्शनकारी होंगे और कई ट्रैक्टर होंगे. सुरक्षाबल परेशान हो गए थे और उन्होंने ढीला रवैया दिखाते हुए फायरिंग नहीं की. उन्हें ये नहीं बताया गया था. बकौल सूत्र, स्ट्रैंडर्ड प्रोसीजर तो ट्रैक्टरों के टायरों को पंचर करना होता है, पर उनकी संख्या अधिक थी और वे लगातार दौड़ाए जा रहे थे.
बता दें कि किसानों की ट्रैक्टर परेड का मकसद तीन कृषि कानूनों को लेकर अपनी मांगों को रेखांकित करना था, लेकिन पुलिस जवानों और किसानों के बिच जमकर बवाल हुआ. इस बिच पुलिस द्वारा किसानों पर लाठीचार्च भी किया गया और आसू गैस के गोले भी दागे गए.
हजारों की संख्या में्र प्रदर्शनकारी किसान अवरोधक तोड़ते हुए लाल किला पहुंच गए और प्राचीर पर एक झंडा लगा दिया. राजपथ और लालकिले पर दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें देखने को मिली. राजपथ पर जहां एक ओर भारतीयों ने गणतंत्र दिवस पर देश की सैन्य क्षमता का प्रदर्शन देखा. वहीं प्रदर्शनकारी तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर लाल किला पहुंच गए जो स्वतंत्रता दिवस समारोह का मुख्य स्थल है.
बता दें कि किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा पर सोशल मीडिया पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कोई किसान नेताओं को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई सरकार से सवाल कर रहा है. इस बिच यह भी देखना होगा की आज सड़कों पर खड़ी बसों के साथ होती तोड़फोड़ नजर आ रही होगी, लेकिन सड़कों पर गड्डे खोद देना, सड़कों पर कंक्रीट भरे ट्रक लगा देना, सड़कों पर पत्थरों की बेरिकेडिंग लगाने का काम भी तो खुद सरकार ने पिछले दो महीने से किया हुआ है.
पूरी दुनिया में कोई कितनी भी अहिंसक भीड़ क्यों न हो, दो महीने शीत लहरी में ठिठुर लेने के बाद, सर्दी में बारिश सहने के बाद, 140 किसानों की मौत के बाद, ऊपर से लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोलों के बाद एक लंबे समय तक अहिंसक बनी नहीं रह सकती. एक तरफ से दो महीने भर हिंसा की जाती रहे और बदले में भीड़ अहिंसक बनी रहे ऐसा संभव ही नहीं है. हिंसा का समर्थन तो वे लोग कर रहे हैं जो सरकार द्वारा दो महीने तक ढहाए जुल्म का समर्थन कर रहे हैं.