नई दिल्ली : वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के प्रावधानों की समीक्षा की मांग को लेकर व्यापार संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) ने 26 फरवरी को भारत बंद का आह्वान किया है. इस दिन देशभर के बाजार बंद रहेंगे और कोई भी व्यापारिक गतिविधियां नहीं होंगी. देश के सभी राज्यों में व्यापारिक संगठनों ने व्यापार बंद में शामिल होने का निर्णय लिया है. दिल्ली में भी अधिकांश व्यापारिक संगठनों ने व्यापार बंद में शामिल होने का फैसला किया है. इस बंद को ऑल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने भी समर्थन जाहीर किया है.
ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से कहा गया है कि सीएआईटी के समर्थन, ईंधन के बढ़ते दाम और ई-वे बिल को लेकर वो भी चक्का जाम करेंगे. दरअसल, सीएआईटी के नेतृत्व में कल 26 फरवरी को जीएसटी में कई प्रावधानों को वापस लेने के साथ ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर भारत बंद बुलाया है.
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि 26 फरवरी को अपनी बात मुखर रूप से उठाने के लिए दिल्ली सहित देश भर में लगभग 1500 स्थानों पर धरना आयोजित होंगे वहीं दूसरी ओर कोई भी व्यापारी उस दिन जीएसटी पोर्टल पर लॉग इन न करके अपना विरोध दर्ज़ करेंगे. उन्होंने बताया कि दिल्ली में अधिकांश प्रमुख व्यापारी संगठनों ने व्यापार बंद में शामिल होने का निर्णय लिया है. कुछ अन्य संगठन आज शाम तक बंद में शामिल होने के निर्णय की घोषणा करेंगे. संगठन ने जीएसटी की समीक्षा और टैक्स स्लैब को और सरल करने के साथ कारोबारियों के नियमों के अनुपालन के लिए इसे और अधिक सरल बनाने की मांग की गई है.
खंडेलवाल ने बताया कि देश भर में व्यापारियों का विरोध तर्कसंगत और शांतिपूर्ण होगा. होलसेल एवं रिटेल बाजार पूरी तरह से बंद रहेंगे जबकि आवश्यक वस्तुओं की बिक्री करने वाली दुकानों को बंद में शामिल नहीं किया गया है. रिहायशी कॉलोनियों में लोगों की जरूरतों को पूरा करने वाली दुकानें आदि को भी बंद से बाहर रखा गया है. उन्होंने कहा कि व्यापार बंद करना व्यापारियों का कर्म नहीं है लेकिन हमारी मजबूरी है क्योंकि जीएसटी कर प्रणाली सरलीकृत होने के बजाय बेहद जटिल हो गई है.
खंडेलवाल ने कहा कि जीएसटी मूल घोषित उद्देश्य के एकदम विरुद्ध चला गया है, जिसके पालन ने व्यापारियों को परेशान कर रखा है. उन्होंने आरोप लगाया कि कर प्रणाली को सरल और तर्कसंगत बनाने के बजाय किस तरह से व्यापारियों पर कर पालना का ज्यादा से ज्यादा बोझ डाला जाए इस दिशा में जीएसटी कॉउन्सिल काम कर रही है ,जो की निहायत अलोकतांत्रिक है.