जयपुर: राजस्थान में फिर से सत्ता की वापसी के लिए भाजपा ने चुनावी रण में पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के दूसरे स्टार प्रचारक प्रदेश में धुंआधार सभाएं कर रहे हैं. सभी नेता अपने भाषणों में केंद्र व राज्य सरकार की उपलब्धियों और हिंदुत्व के मुद्दे को सबसे ज्यादा हवा दे रहे हैं.
कोई नेता इशारों में तो कोई सीधे-सीधे हिंदू मतदाताओं को साधने की जद्दोजहद में जुटा है. जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभाओं में भारत माता की जय और राम मंदिर के मुद्दे को उछाल रहे हैं, वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह घुसपैठियों का मामला उठाकर ध्रुवीकरण की जमीन तैयार कर रहे हैं. वैसे ध्रुवीकरण के भाजपा के इस सियासी खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं.
उन्हें भाजपा ने रणनीति के तहत ऐसी सीटों पर प्रचार के लिए उतारा जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद ज्यादा है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बाद योगी ही ऐसे नेता हैं, जिन्होंने प्रदेश में सबसे ज्यादा सभाएं की हैं. भाजपा के रणनीतिकार ध्रुवीकरण के लिए स्थानीय मुद्दा नहीं मिलने से तो परेशान हैं ही, योगी आदित्यनाथ की सभाओं में भीड़ नहीं जुटने से भी सकते में है.
गौरतलब है कि योगी की कुछ सभाओं को छोड़कर ज्यादातर में उम्मीद के अनुरूप भीड़ नहीं आई. कई जगह तो लोगों के बैठने की व्यवस्था के मुक़ाबले आधे लोग ही सभा में आए. अजमेर में हुई सभा में तो दो हजार लोग भी नहीं पहुंचे. भीड़ की कमी के इतर योगी की एक विवादित टिप्पणी भाजपा के गले की हड्डी बन गई है.
अलवर की एक सभा में उन्होंने कहा, ‘बजरंग बली एक ऐसे लोक देवता हैं जो स्वयं वनवासी हैं, गिर वासी हैं, दलित हैं और वंचित हैं.’ योगी की ओर से हनुमान को दलिज बताए जाने पर जिस तरह से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उन्हें देखकर भाजपा नेतृत्व चिंतित है. पार्टी को डर सता रहा है कि योगी का यह बयान उल्टा नुकसान न कर दे.
प्रदेश की राजनीति के जानकारों की मानें तो भाजपा की ओर से पूरी ताकत झोंकने के बावजूद चुनावी रण में अभी तक ध्रुवीकरण की जमीन तैयार नहीं हुई है. हां, एकाध सीट पर इसका असर जरूर देखा जा रहा है. जैसलमेर जिले की पोकरण सीट इनमें से एक है. भाजपा राजस्थान में ध्रुवीकरण क्यों नहीं कर पा रही?
इस सवाल का जवाब देते हुए संघ के एक प्रचारक कहते हैं, ‘हिंदुत्व के लिए जीने-मरने वाले लोग वसुंधरा सरकार में हुई कई घटनाओं से दुखी हैं. इस वजह से वे अभी तक चुनाव में सक्रिय नहीं हुए हैं. उनकी निष्क्रियता का ख़ामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है.’राजस्थान के हिंदुवादी गुटों की वसुंधरा सरकार से नाराजगी की एक वजह फतेहपुर, मालपुरा और जैतारण में हुई घटनाएं भी हैं.
सीकर जिले के फतेहपुर और टोंक जिले के मालपुरा में इसी साल अगस्त में कावड़ियों पर हमला हुआ था. हिंदुवादी संगठनों को शिकायत है कि सरकार ने दोषियों के खि़लाफ कार्रवाई करने की बजाय हिंदुओं पर ही मुकदमे दर्ज करवा दिए.वहीं, पाली जिले के जैतारण में इसी साल मार्च में दो समुदायों के बीच हुई भिड़ंत की कसक अभी तक हिंदुवादी संगठनों के मन में है.
हनुमान जयंती का जुलूस जब कस्बे के नयापुरा इलाके से गुजर रहा था तो दो समुदायों के बीच दुकान के बाहर नारेबाजी को लेकर बहस हुई. दोनों तरफ से जमकर पथराव और आगजनी हुई, जिसमें कई लोग घायल हुए. हिंदूवादी संगठनों के मुताबिक पुलिस ने इस घटना के बाद एकतरफा कार्रवाई करते हुए संघ और उससे जुड़े संगठनों के लोगों को गिरफ्तार किया गया.
संघ इसके लिए जलदाय मंत्री सुरेंद्र गोयल को जिम्मेदार मानता है. जैतारण से उनका टिकट कटने की वजह मार्च में हुई इसी घटना को माना जा रहा है. गोयल ने टिकट कटने के बाद इस बात को दोहराया. अब वे निर्दलीय मैदान में हैं.