लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते सोमवार को कोरोना वैक्सीन लगवाने बाद न्यूज एजेंसी एएनआई को जो रूटीन बयान दिया था, अब वो राज्य सरकार के प्रचार के लिए गंभीर झटका बन चुका है. इस वीडियो में मुख्यमंत्री को अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते सुने गए थे.
इसके बाद भी गोदी मीडिया खामोश है, बल्कि योगी के पक्ष में बचाव भी करने में जुटे हुए हैं. इस लाइव वीडियो के एक छोटे से क्लिप को पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने अपने सोशल मीडिया पर ट्वीट किया था, जो कि काफी तेजी से वायरल हो गया.
इसके जवाब में आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी ने दावा किया कि ये वीडियो फेक है और जो भी इसे ट्वीट करेगा, उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी. उन्होंने यह भी दावा किया है कि इसके लिए एक अनाम वेबसाइट ‘ब्रेकिंग ट्यूब’ की स्टोरी का सहारा लिया गया, जिसमें दावा किया गया था कि योगी आदित्यनाथ की वीडियो से छेड़छाड़ की गई है.
इस रिपोर्ट में सीधे ये बात लिख दी गई थी कि वीडियो फेक है. लेकिन, इसका कोई विवरण नहीं था कि आखिर किस आधार पर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि वीडियो फेक है. जबकि, सरकार की दलीलों के कुछ ही देर बाद न्यूज 18 और एबीपी गंगा की भी लाइव फीड सामने आई, जिसमें आदित्यनाथ स्पष्ट रूप से आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करते हुए दिखाई दे रहे थे. इसके बाद बूम लाइव और ऑल्ट न्यूज ने भी फैक्ट चेक करके बताया कि ‘योगी आदित्यनाथ ने अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया था और इस वीडियो के साथ कोई छेड़छोड़ नहीं की गई थी.
योगी आदित्यनाथ ने किया था अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल
न्यूज एजेंसी एएनआई ने फ़ौरन ये लाइव प्रसारण बंद कर दिया और फिर वीडियो हटा लिया. इसके बाद एएनआई ने दूसरा वीडियो अपलोड किया. हटाई गयी क्लिप में आदित्यनाथ को कहते हुए सुना जा सकता है कि ‘‘मैं आदरणीय प्रधानमंत्री जी का, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं. देश के वैज्ञानिकों का अभिनंदन करता हूं. क्या करते हो ‘‘चू.....?’’ हालांकि एएनआई ने बाद वाले में ट्वीट में स्वास्थ्य मंत्रालय का संदर्भ दिया. लेकिन, एएनआई के दोबारा रिकॉर्ड किये गये वीडियो में मुख्यमंत्री स्वास्थ्य मंत्रालय का नाम नहीं ले रहे हैं. जबकि, एजेंसी ने इसे लेकर अभी कोई बयान जारी नहीं किया है.
वीडियो एडिट नहीं किया गया
एएनआई ने वीडियो हटा तो लिया, लेकिन ये लाइव प्रसारण कई न्यूज़ चैनल में दिखाया जा चुका था. नीचे एबीपी गंगा का प्रसारण है जिसमें 6 सेकंड के बाद आदित्यनाथ को अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हुए सुना जा सकता है. इतना ही नहीं, यही वीडियो न्यूज़ 18 उत्तर प्रदेश पर भी सुना गया. इसके साथ ही फर्स्ट न्यूज राजस्थान के प्रसारण में भी 2 मिनट 10 सेकंड पर विवादित शब्दों का इस्तेमाल करते हुए सुना जा सकता है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एएनआई को इंटरव्यू देते हुए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया. फैक्ट चेक करने वाली न्यूज एजेंसी ऑल्ट न्यूज़ ने एएनआई की मुख्य संपादक स्मिता प्रकाश से संपर्क किया. उनका जवाब था, मुझे आपसे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. ये कहते हुए उन्होंने फ़ोन काट दिया. इतना ही नहीं, एएनआई की ब्यूरो चीफ़ कामना हजेला ने भी इस वीडियो की बात सुनते ही फ़ोन काट दिया. कुल मिलाकर वीडियो एडिट किये जाने वाला दावा ग़लत है. एएनाआई ने अभी तक इस विवाद पर कोई सफ़ाई नहीं दी है.
सवाल उठाने वाले लोगों, आलोचकों, पत्रकारों इत्यादि को जबरन चुप कराने की कोशिश
चौंकाने वाली बात ये है ही कि योगी आदित्यनाथ ने आम लोगों की तरह अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया, बल्कि इससे ज्यादा हैरान करने वाली ये भी है कि इस पर सवाल उठाने वाले लोगों, आलोचकों, पत्रकारों इत्यादि को सरकार जबरिया अंदाज में चुप कराने की कोशिश कर रही है.
सरकार के पक्ष में बोलने वाली वेबसाइट ऑप-इंडिया ने लिखा, ‘राज्य सरकार ने इस मामले में फॉरेंसिक जांच के आदेश दे दिए हैं. यूपी सीएम के सूचना सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा है कि जो भी सीएम योगी का एडिटेड वीडियो ट्वीट कर रहा है, उसके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा. खुद त्रिपाठी ने भी ऐसे कई ट्वीट्स को रीट्वीट किया जो आदित्यनाथ के वीडियो को फेक बता रहे थे.
बता दें कि ये पहला मौका नहीं है जब योगी सरकार ने खुद की आलोचनाओं को खामोश करने के लिए आपराधिक मामले दायर करने की धमकी दी है. राज्य सरकार ने इससे पहले भी कई मौकों पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है. मिर्जापुर के एक स्कूल में मिड-डे मील के तहत बच्चों को रोटी और नमक परोसने की खबर प्रसारित करने के चलते पत्रकार पवन जायसवाल के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज किया गया था.
इसके अलावा सीतापुर के क्वारंटाइन सेंटर में अनियमितताओं की खबर लिखने के चलते एक अन्य पत्रकार रवीन्द्र सक्सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया था. इसके साथ ही स्क्रॉल.इन की पत्रकार सुप्रिया शर्मा और द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन और इस्मत आरा के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है. हाथरस रेप मामले को उठाने के लिए इस पत्रकार को भी एफआईआर की धमकी दी गई थी.
योगी शासन की एक प्रमुख निशानी ये है कि उसने मीडिया को शांत करने के लिए एफआईआर और धमकियों का सहारा लिया है. नया मामला सिर्फ इसी बात की तस्दीक करता है कि उनके प्रमुख सलाहकार लगातार गैर-जवाबदेह रहे हैं. इसलिए वे खुलेआम लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दे रहे हैं.