रायपुर : छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार अडानी पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान नजर आ रही है. सरकार ने भारतीय वन्यजीव संस्थान की चेतावनी के बावजूद खनन की मंजूरी दी. जबकि रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के उस जंगली इलाके को नो गो एरिया घोषित करने के लिए कहा गया. इसके अलावा सरकार के कई पर्यावरण संबंधी अध्ययन में माना गया कि इस इलाक़े में किसी भी परिस्थिति में खनन को मंज़ूरी नहीं दी जा सकती.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अपने जारी जैव विविधता रिपोर्ट में चेतावनी दी कि हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित किया जाना चाहिए. इसके बावजूद राज्य की कांग्रेस सरकार ने उसी क्षेत्र में पीईकेबी कोयला ब्लॉक में खनन के दूसरे चरण को मंजूरी दी. पीईकेबी (परसा पूर्व और केटे बेसन) कोयला ब्लॉक का स्वामित्व राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के पास है और इसे अडानी इंटरप्राइजेज द्वारा संचालित किया जाता है. अडानी इंटरप्राइजेज ही इसका आधिकारिक खनन डेवलपर है.
राज्य सरकार ने 3827 वर्ग किलोमीटर में इस हाथी अभयारण्य को बनाने की बात कही थी और केंद्र सरकार को इस संबंध में पत्र भी लिखा था. लेकिन अपने लिखे से ‘यू टर्न’ लेते हुए राज्य सरकार ने ताज़ा अधिसूचना में हाथी अभयारण्य के दायरे में केवल 1995.48 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को ही शामिल किया है. राज्य सरकार ने 3827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में प्रस्तावित हाथी अभयारण्य में इस इलाके के जिन वन क्षेत्रों को शामिल किया था, उसके दायरे में 64 कोल ब्लॉक आ रहे थे. अब इनमें से 54 कोल ब्लॉक के वन क्षेत्र, नए हाथी अभयारण्य के दायरे से बाहर हैं. अब इन क्षेत्रों में कोयला खनन का रास्ता साफ़ हो गया है.
28 अक्टूबर को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (एफएसी) की हुई बैठक में राज्य सरकार ने समिति के सामने इसको तत्काल मंजूरी देने का भी अनुरोध किया था. बैठक में राज्य सरकार ने कहा कि पीईकेबी प्रस्ताव को कानून के अनुसार माना जा सकता है क्योंकि भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद द्वारा प्रस्तुत जैव विविधता आकलन रिपोर्ट में जैव विविधता से संबंधित मुद्दों पर ध्यान दिया गया है. आईसीएफआरई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि तारा, परसा, पीईकेबी और केटे एक्सटेंशन जो या तो पहले से ही खुले हैं या मंजूरी स्वीकृत होने के अंतिम चरण में हैं. इसलिए यहां खनन करने को लेकर विचार किया जा सकता है. हालांकि एफएसी ने इस मुद्दे पर फैसला टाल दिया.
लेकिन बैठक के मिनट्स से यह भी पता चलता है कि आईसीएफआरई और राज्य ने डब्ल्यूआईआई द्वारा उठाए गए कई आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया, जिसे आईसीएफआरई की रिपोर्ट के दूसरे खंड के रूप में शामिल किया गया था. डब्ल्यूआईआई ने कहा कि कोयला खदानों और बुनियादी ढांचे के विकास से यहां के वन्यजीवों को नुकसान पहुंचेगा. यह भी कहा कि पहले ही राज्य में कई जगहों पर हाथियों और लोगों के बीच संघर्ष देखने को मिला है. आने वाले समय में यह संघर्ष काफी बड़ा भी हो सकता है.