देश में साल 2021 में होने वाली जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना की मांग का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है.
पटना : देश में साल 2021 में होने वाली जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना की मांग का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है. बिहार की सियासत में जेडीयू और आरजेडी भले ही एक दूसरे के विरोधी हो लेकिन बिहार में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर दोनों दल एक मत है. अब कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर नीतीश को समर्थन दिया है. इससे बिहार में एक बार फिर से नया राजनीतिक समीकरण बनता दिख रहा है. बिहार में जातीय जनगणना के विरोध में सिर्फ बीजेपी ही विरोध में है.
रविवार को बिहार कांग्रेस ने कहा कि वो जातीय जनगणना के मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूरा समर्थन करती है. कांग्रेस ने कहा कि नीतीश, बीजेपी की परवाह किए बिना बिहार में जातीय जनगणना करवाएं. कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने रविवार को मीडिया से बात करते हुए कहा, मुख्यमंत्री सर्वदलीय बैठक बुलाना चाहते हैं, भाजपा सहमत होते नहीं दिख रही, नीतीश कुमार को आगे बढ़ना चाहिए, इस मुद्दे पर कांग्रेस पूरी तरह उनके साथ है.
बिहार में पहले बीजेपी जातीय जनगणना का समर्थन कर चुकी है. उसके विधायक भी विधानसभा में दो बार इससे संबंधित प्रस्ताव के पक्ष में मतदान कर चुके हैं. लेकिन जबसे से केंद्र सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और सामाजिक वर्ग की जनगणना अलग से नहीं होगी तब से बिहार में पार्टी असमंजस की स्थिति में है. क्योंकि नीतीश कुमार पहले से ही इसके पक्ष में हैं. राजद प्रमुख लालू यादव भी राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं.
इस मुद्दे पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय शिष्टमंडल की पीएम मोदी के साथ मुलाकात भी हो चुकी है, लेकिन तब कोई नतीजा नहीं निकला था. जिसके बाद अब नीतीश कुमार ने राज्य में सर्वेक्षण करवाने की बात कह रहे हैं. हाल में उन्होंने खुलासा किया था कि उन्होंने इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक का प्रस्ताव दिया है, जिसे भाजपा की ओर से मंजूरी मिलना बाकी है.
कांग्रेस से पहले लालू यादव की पार्टी भी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार को सपोर्ट करने की बात कह चुकी है. राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा था, हम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील करते हैं कि वे राज्य में जाति जनगणना कराने के अपने फैसले पर अडिग रहें. बीजेपी को छोड़कर सभी पार्टियां इसके लिए तैयार हैं. यदि वो इस मुद्दे पर आगे बढ़ते हैं और किसी भी कठिनाई का सामना करते हैं, तो हमारी पार्टी और तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में पूरा महागठबंधन उनके साथ खड़ा होगा.
बता दें कि पिछले कई सालों से जातिनिहाय जनगणना की मांग हो रही है. लेकिन सत्ताधारी लोगों ने इस मांग के तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. जिसके चलते पिछडे यानी ओबीसी की जातिनिहाय जनगणना नहीं हो सकी. सवाल यह है कि जाती निहाय जनगणना की जरूरत क्यों है और सत्ताधारी लोग इसका विरोध क्यों कर रहे है, इसको समझना जरूरी है. साल 1931 की जनगणना के अनुसार ओबीसी की संख्या 52 फीसदी है. अब यह संख्या 60 फीसदी के करीब हो सकती है. इतने बडे समुह की जाती निहाय जनगणना सरकार क्यों नहीं कर रही है? इसके पीछे क्या वजह है.
अगर ओबीसी की जनगणना कराई जाति है सभी तरह का डेटा सामने आएगा की किस जातियों में कितने लोग पढ़े है, कितने लोग नौकरी कर रहे है, उनके पास कितनी जमीन है, उनकी आर्थिक स्थिति कैसी है, आदिं सभी तरह के आंकडे़े सामने आएंगे. इस आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार को उनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए अलग से बजट रखना होगा. इसके अलावा शासन प्रशासन में उनको संख्या के आधार पर हिस्सेदारी देनी होगी. यदि प्रशासन की बात करे तो सरकारी उच्च पदों पर लगभग 70 फीसदी से ज्यादा लोग उच्च जाति के है. यदि ओबीसी की जाती निहाय जनगणना होती है तो इन उच्च पदों को ओबीसी काबिज कर सकते है. जिससे सवर्ण जातियों कि प्रशासन में उच्च पदों पर हिस्सेदारी कम हो जाएगी. यह ना हो इसलिए ओबीसी की जातिनिहाय जनगणना का विरोध सत्ताधारी लोग कर रहे है.
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