बीते कुछ वर्षों में मामूली संक्रमणों के लिए ज्यादा इस्तेमाल की वजह से गंभीर संक्रमणों के खिलाफ़ एंटीबायोटिक्स दवाओं का असर नहीं हो रहा है.
नई दिल्ली : बीते कुछ वर्षों में मामूली संक्रमणों के लिए ज्यादा इस्तेमाल की वजह से गंभीर संक्रमणों के खिलाफ़ एंटीबायोटिक्स दवाओं का असर नहीं हो रहा है. एंटीबायोटिक दवाओं के असर को लेकर अब तक के सबसे बड़े अध्ययन में पाया गया कि साल 2019 में दुनिया भर में 12 लाख से अधिक लोगों की मौत ऐसे बैक्टीरिया से हुए संक्रमण की वजह से हो गई जिनपर दवाओं का असर नहीं हुआ. मेडिकल जर्नल द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका ख़तरा हर किसी को है मगर ग़रीब देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.
दवाओं के बेअसर होने की इस स्थिति को मेडिकल शब्दावली में एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेन्स (एएमआर) कहा जाता है. जब बैक्टीरिया, वायरस समय के साथ बदलते हैं तब उनपर दवाओं का असर नहीं होता है. इससे किसी संक्रमण का इलाज कठिन हो जाता है और गंभीर बीमारी के फैलने से मृत्यु का ख़तरा बढ़ जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे बचाव के लिए नई दवाओं के लिए तत्काल निवेश करने की जरूरत है.
रिपोर्ट के अनुसार, कोविड -19 के कारण बड़ी तादाद में लोग अस्पतालों में भर्ती होने लगे और एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ा जिसकी वजह से एएमआर का ख़तरा बढ़ गया है. लैंसेट में छपी एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर रहने से होनेवाली मौतों का अनुमान लगाने वाली ये रिपोर्ट 204 देशों में किए गए विश्लेषण के बाद तैयार की गई. अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम की ओर से किए गए इस विश्लेषण का नेतृत्व अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय ने किया.
टीम ने अनुमान लगाया कि वर्ष 2019 में दुनिया भर में ऐसी बीमारियों से 50 लाख तक लोगों की मृत्यु हुई जिनमें एएमआर की भूमिका रही. ये उन 12 लाख मौतों के अलावा है जिनके लिए सीधे-सीधे एएमआर वजह था. यानी लगभग 60 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत के पीछे एएमआर की भूमिका हो सकती है. इसकी तुलना यदि दूसरी बीमारियों से की जाए तो उसी वर्ष एड्स से 860,000 और मलेरिया से 640,000 लोगों की मौत हुई. एएमआर से होने वाली ज़्यादातर मौतें निमोनिया जैसे लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन यानी फेफड़ों से जुड़े संक्रमण या ब्लडस्ट्रीम इन्फेक्शन से हुईं जिससे कि सेप्सिस हो सकता है.
एमआरएसए (मेथिसिलिन प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस) विशेष रूप से घातक था. वहीं ई. कोलाई और कई अन्य बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारियों के लिए भी दवाओं के बेअसर रहने को वजह माना गया. शोध के लिए अस्पतालों से मरीज़ों के रिकॉर्ड अध्ययनों और अन्य डेटा स्रोतों के आधार पर बताया गया कि छोटे बच्चों को सबसे अधिक ख़तरा था. एएमआर से जुड़ी मौतों में हर पांचवां मामला पांच साल से कम उम्र के बच्चे का था.
रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया के देशों में वर्ष 2019 में एएमआर से 389,000 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई. रिपोर्ट के निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि बैक्टीरिया का प्रतिरोधी बन जाना एक ऐसी वैश्विक स्वास्थ्य इमर्जेंसी बन चुकी है जिसे दुनिया की कोई भी सरकार अनदेखा नहीं कर सकती. हमें एंटीबायोटिक के उपयोग पर निगरानी करनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे भविष्य के लिए प्रभावी रहें.
वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के प्रोफेसर क्रिस मरे ने कहा कि नए डेटा ने दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के वास्तविक पैमाने को उजागर किया है. प्रोफेसर मरे के अनुसार यह डाटा एक स्पष्ट संकेत था कि अगर हम रोगाणुरोधी प्रतिरोध से दौड़ में आगे रहना चाहते हैं तो तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है. वहीं वहीं वॉशिंगटन डीसी के सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के डॉ. रामानन लक्ष्मीनारायण ने कहा कि एएमआर को नियंत्रित करने के लिए दवाओं के समझदारी से इस्तेमाल की ज़रूरत है.
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