1991 में बनाया पूजा स्थल कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है. अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था.
लखनऊ : एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने ज्ञानवापी मस्जिद केस को लेकर आए कोर्ट के आदेश को गलत करार दिया. उन्होंने कहा है कि जज का फैसला गलत है. ओवैसी ने आरएसएस और बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि यह लोग देश में तमाशा कर रहे हैं देश आस्था से नहीं बल्कि संविधान से चलेगा. हिंदी न्यूज चैनल एबीपी न्यूज से साथ बातचीत के दौरान उन्होंने गुरुवार ये बातें कहीं.
ओवैसी ने इस दौरान यह भी कहा कि वह एक मस्जिद को नहीं खोना चाहते हैं. सवाल जवाब के दौर के बीच उन्होंने एंकर के सामने यह भी सवाल उठा दिया- मैं अगर कहूंगा कि पीएम के घर या ऑफिस के नीचे मस्जिद है, तब क्या आप मेरी बात मान लेंगे और खुदाई करवाएंगे? वहीं, विहिप ने कोर्ट के फैसले की तारीफ की. साथ ही उम्मीद जताई कि ‘सच्चाई’ जल्द सामने आएगी. परिषद ने मस्जिद प्रबंधन समिति से कोर्ट के फैसले के अनुपालन में सहयोग करने की अपील भी की.
दरअसल, वाराणसी के एक कोर्ट ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी कैंपस का सर्वे कराने के लिए नियुक्त कोर्ट कमिश्नर को पक्षपात के आरोप में हटाने से जुड़ी याचिका गुरुवार को खारिज कर दी. कोर्ट ने इस दौरान यह स्पष्ट किया कि इस मस्जिद के अंदर भी वीडियोग्राफी कराई जाएगी. सिविल जज रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को हटाने से जुड़ी अर्जी नामंजूर कर दी. साथ ही विशाल सिंह को विशेष कोर्ट कमिश्नर और अजय प्रताप सिंह को सहायक कोर्ट कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया. कोर्ट ने इसके साथ ही पूरे कैंपस परिसर की वीडियोग्राफी करके 17 मई तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश भी दिए.
बता दें कि 1991 में बनाया पूजा स्थल कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है. अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था. अयोध्या का फैसला आने के बाद काशी और मथुरा सहित देशभर के करीब 100 पूजा स्थलों पर मंदिर की जमीन होने को लेकर दावेदारी की जा रही है, लेकिन 1991 के कानून के चलते दावा करने वाले कोर्ट नहीं जा सकते. फिर भी कोर्ट जा रहे है.
यही नहीं तो सुप्रीम कोर्ट ने भी राम मंदिर बाबरी मस्जिद फैसले में सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने देश के तमाम विवादित धर्मस्थलों पर भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 1991 को लागू हुए प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप एक्ट, 1991 का जिक्र भी किया है. शीर्ष अदालत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि काशी और मथुरा में जो मौजूदा स्थिति है वही बनी रहेगी उसमें किसी भी तरह के बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने अपने फैसले में देश के सेक्युलर चरित्र की बात की थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1991 का यह कानून देश में संविधान के मूल्यों को मजबूत करता है. इसके अलावा पीठ ने देश की आजादी के दौरान मौजूद धार्मिक स्थलों के जस के तस संरक्षण पर भी जोर दिया था. बेंच ने कहा, ‘‘देश ने इस एक्ट को लागू करके संवैधानिक प्रतिबद्धता को मजबूत करने और सभी धर्मों को समान मानने और सेक्युलरिज्म को बनाए रखने की पहल की है. इसके बावजूद ब्राह्मणवादी संगठनाए मुस्लिम धर्मस्थलों को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही हैं जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है.
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