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सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों की कपिल सिब्बल ने की आलोचना, कहा- कोर्ट से अब कोई उम्मीद नहीं बची है

Published On :    9 Aug 2022   By : MN Staff
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वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में पारित कुछ फैसलों कि आलोचना कि है. कपिल सिब्बल ने कहा है कि उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं बची है.



नई दिल्ली : वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में पारित कुछ फैसलों कि आलोचना कि है. कपिल सिब्बल ने कहा है कि उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं बची है. उन्होंने कहा, अगर आपको लगता है कि आपको सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी, तो आप बहुत गलत हैं. मैं यह बात सुप्रीम कोर्ट में 50 साल का अनुभव पूरा करने के बाद कह रहा हूं. सिब्बल एक पीपुल्स ट्रिब्यूनल के कार्यक्रम में बोल रहे थे. कार्यक्रम का फोकस 2002 गुजरात दंगों और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के नरसंहार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर था.


उन्होंने कहा भले ही कोर्ट कोई भी ऐतिहासिक फैसला सुना दे, लेकिन इससे जमीनी हकीकत शायद ही कभी बदलती हो. इस साल मुझे सुप्रीम कोर्ट के अभ्यास के 50 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन इसके बावजूद भी मुझे कोई उम्मीद नहीं है. हम सुप्रीम कोर्ट के दिए गए प्रगतिशील निर्णयों के बारे में बात करते हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर जो होता है, उसमें बहुत बड़ा अंतर है. एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने निजता पर फैसला दिया और दूसरी तरफ ईडी के अधिकारी आपके घर आए. इसमें आपकी निजता कहां है.


सिब्बल ने कहा कि 2002 के गुजरात दंगों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य लोगों को एसआईटी ने क्लीन चिट दे दी थी. इसे लेकर कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया.


उन्होंने कहा 2009 में छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियानों के दौरान सुरक्षा बलों ने 17 आदिवासियों को मार दिया था. इस घटना की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका को भी खारिज कर दिया गया. यह सभी फैसले जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता में लिए गए थे, जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं. सिब्बल जकिया जाफरी और पीएमएलए अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे.


सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि संवेदनशील मामले केवल चुनिंदा जजों को ही सौंपे जाते हैं. इसके चलते कानून को आमतौर पर पहले से पता होता है कि फैसले का परिणाम क्या होगा. मैं ऐसी अदालत के बारे में बात नहीं करना चाहता, जहां मैंने 50 साल तक अभ्यास किया, लेकिन अब बोलने का समय आ गया है. अगर हम नहीं बोलेंगे तो कौन आवाज उठाएगा.


सिब्बल ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि कोर्ट में जो जज बिठाए जाते हैं, केवल समझौता की प्रक्रिया होती है. सुप्रीम कोर्ट जहां यह तय करने की कोई व्यवस्था ही नहीं है कि किस मामले की अध्यक्षता किस बेंच द्वारा की जाएगी. जहां भारत के चीफ जस्टिस तय करें कि किस मामले को कौन सी बेंच कब निपटाएगी वह अदालत कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकती.


भारत में हमारी माई-बाप संस्कृति है, लोग शक्तिशाली के पैरों में गिरते हैं. लेकिन समय आ गया है कि लोग बाहर आएं और अपने अधिकारों की सुरक्षा की मांग करें. स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें. उन्होंने कोर्ट में पेंडिंग धर्म संसद मामले का भी जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और सरकारों से जवाब मांगा. उन्होंने कहा कि आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया और गिरफ्तार होने पर भी उन्हें 1-2 दिनों में जमानत पर रिहा कर दिया गया. फिर दो सप्ताह के बाद धर्म संसद की बैठकें जारी रखीं.

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