‘‘वादा था दो करोड़ नौकरी हर साल देने का, आठ साल में देनी थीं 16 करोड़ नौकरियां. अब कह रहे हैं साल 2024 तक केवल 10 लाख नौकरी देंगे. 60 लाख पद तो केवल सरकारों में खाली पड़े हैं, 30 लाख पद केंद्र सरकार में खाली पड़े हैं. ऐसी जुमलेबाजी कब तक? : रणदीप सिंह सुरजेवाला’’
नई दिल्ली : अगर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जुमलेबाज कहा जाय तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. क्योंकि जुमलेबाजी करने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अब तक कोई कसर नहीं छोड़ी है. हालांकि, नरेन्द्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्हें जुमलेबाज से लेकर चुनावजीवी तक कहा जाता है. प्रधानमंत्री के जुमलेबाजी का सबूत एक बार फिर से गुजरात विधानसभा चुनाव और दिल्ली के एमसीडी चुनाव को ध्यान में रखते हुए देखा गया है. वैसे गुजरात का चुनाव पीएम मोदी की नाक का सवाल है. इसलिए गुजरात चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए प्रयासरत प्रधानमंत्री 71 हजार नौकरी का लॉलीपाप देकर न केवल जनता बल्कि युवाओं को भ्रमित करने का काम शुरू कर दिया है.
मालूम हो कि 8 साल पहले केंद्र की सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार हर वर्ष दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने का वादा किया था. लेकिन, बुधवार 27 जुलाई 2022 को सरकार ने संसद में जो आंकड़े पेश किये वे वादों के मुताबिक हकीकत से मीलों दूर हैं.लोकसभा में सरकार द्वारा पेश किये गये आंकड़ों के मुताबिक मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने से लेकर अब तक अलग-अलग सरकारी सरकारी विभागों में कुल 7 लाख 22 हजार 311 आवेदकों को सरकारी नौकरी दी गई है. इनमें एक दिन पहले वाले 71 हजार को भी जोड़ लिया जाए तो भी हर साल के दो करोड़ का आंकड़ा कही से भी नहीं पाया जा सकता है.
बता दें कि 2018-19 में महज 38 हजार 100 लोगों को ही नौकरी मिली, इसमें हैरान करने वाली बात ये है कि इसी साल सबसे अधिक यानी 5 करोड़, 9 लाख, 36 हजार 479 लोगों ने नौकरी पाने के लिए आवेदन किया था. इसके बाद 2019-20 में सबसे अधिक यानी 1 लाख 47 हजार 096 युवक सरकारी नौकरी हासिल करने में कामयाब हुये थे. सालाना दो करोड़ के दावों के विपरीत ये आंकड़े जाहिर करते हैं कि सरकार अपने दावे का महज एक फीसदी यानी यानी हर साल दो लाख नौकरियां भी देने में नाकामयाब साबित हुई. वहीं, इन आठ सालों में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने वालों की संख्या बताती है कि देश में किस कदर बेरोजगारी है. इस दौरान कुल 22 करोड़ 6 लाख लोगों ने आवेदन किया था. सरकार ने इसका ब्यौरा भी दिया है कि हर वर्ष कितने लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया है.
सबसे ज्यादा हैरानी की बात है कि तमाम राज्यों की सरकारों को अगर छोड़ भी दें तो अकेले केंद्र सरकार में ही करीब 30 लाख पद खाली पड़े हैं. लेकिन सरकार उन्हें इसलिए नहीं भरना चाहती, क्योंकि वे एक-एक करके तमाम महत्वपूर्ण संस्थानों का निजीकरण करना चाहती है. इसके अलावा एक सच ये भी है कि पेंशन जैसी सुविधा न होने के बावजूद युवा आज भी प्राइवेट सेक्टर की बजाय सरकारी नौकरी को ही अपने भविष्य के लिए सुरक्षित मानता है. असल में देश में बेरोजगारी का जो आलम है उसे देखते हुए अगर सरकार हर साल 10 लाख नौकरियां भी देने लगे तब भी इस खाई को पाटने में कई दशक लग जाएंगे. बीती 16 जून 2022 को प्रधानमंत्री मोदी ने अगले डेढ़ साल में 10 लाख नौकरियां देने का एलान किया है. पीएम ने सभी मंत्रालयों और विभागों में अगले डेढ़ साल में 10 लाख लोगों की भर्ती करने का निर्देश दिया था.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के डेटाबेस पर आधारित सेंटर फॉर इकनॉमिक डाटा एंड एनालिसिस की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 7.11 प्रतिशत हो गई थी. मुंबई स्थित सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के आंकड़ों के मुताबिक तब से देश में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत से ऊपर ही बनी हुई है. खुद भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2020 में कोरोना महामारी की पहली लहर में 1.45 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई. दूसरी लहर में 52 लाख की और तीसरी लहर में 18 लाख लोग नौकरी से वंचित हो गये. जहां एक तरफ करोड़ों परिवार गरीबी की खाई में समा गये तो दूसरी तरफ लाखों परिवार भुखमरी की चपेट में आ गये. ऐसे समय में जब लोगों को नौकरी और रोजगार की बेहद जरूरत है तो सरकार ऐसे समय में भी चुनावी जुगाड़ लगा रही है. लोगों को नौकरी और रोजगार देने के बजाए केवल नियुक्ति पत्र का लॉलीपॉप दे रही है. इस बात से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता है कि, पीएम मोदी 16 करोड़ नौकरी की जगह सिर्फ 71 हजार को जॉब लेटर दे बीच चुनाव में वोटरों को भ्रमित कर रहे हैं.