नई दिल्ली : भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और हत्या करना बहुत ही आसान हो चुका है. आंकड़े बताते हैं कि हर 10 मिनट में एक महिला का बलात्कार, हर 15 मिनट में सामुहिक बलात्कार और 35 मिनट में एक बच्ची को हवस का शिकार बनाया जा रहा है. परन्तु उनके आंकड़े उपलब्ध ही नहीं है, क्यों? क्योंकि, उन आकड़ों में हेराफेरी की जाती है. इसलिए सही आंकड़ा उपलब्ध ही नहीं है. गौरतलब है कि मुंबई स्थित टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की निशी मित्रा ने भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सालाना आंकड़ों को समझने के लिए कई साल तक अध्ययन किया है. हालांकि, आंकड़े इस तरह जमा किए जाते हैं कि कोई यह नहीं जान सकता कि महिलाओं की कितनी हत्याएं हुईं. उन अपराधों को भी सिर्फ हत्याओं के रूप में दर्ज किया जाता है. इसीलिए आंकड़े सबसे बड़ा मुद्दा हैं. समस्या अब तक भी अदृश्य है.
भारतीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की जो सालाना रिपोर्ट जारी होती है, उसमें पुलिस द्वारा दर्ज हत्याओं के कारण तो जारी किए जाते हैं, लेकिन यह कहीं स्पष्ट नहीं किया जाता कि महिलाओं को खासतौर पर क्यों मारा गया. इसके अलावा कत्ल कर दी गईं महिलाओं की संख्या रिपोर्ट में दर्ज कुल हत्याओं के आंकड़ों से भी मेल नहीं खाती है. बलात्कार के बाद हत्या, दहेज के कारण हत्या और आत्महत्याओं की संख्या ही कुल हत्याओं से ज्यादा निकलती है. इसकी वजह वे श्रेणियां हैं जिनमें एक से ज्यादा अपराधों के मामलों को दर्ज किया जाता है. क्योंकि बलात्कार के बाद हत्या की श्रेणी 2017 तक थी ही नहीं, जबकि एनसीआरबी का डेटा 1993 से उपलब्ध है.
एनसीआरबी के मुताबिक पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सबसे ज्यादा मामले दर्ज होते हैं. 2021 में हर दस लाख पर 800 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जबकि राष्ट्रीय औसत 282 का है. दिल्ली में यह आंकड़ा 610 का रहा और उसके बाद ओडिशा (685), हरियाणा (563), तेलंगाना (552) और राजस्थान (512) का नंबर है. महिलाओं के खिलाफ सबसे कम अपराध नागालैंड (25), गुजरात (105) और तमिलनाडु (111) में दर्ज किए गए.
ताजा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट इसी साल जारी हुई है. यह सर्वे 2019 से 2021 के बीच किया गया था. इसमें लोगों से पत्नी को पीटने के बारे में उनकी राय पूछी गई. सर्वे के मुताबिक 45.4 प्रतिशत महिलाओं और 44.2 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि कुछ विशेष कारणों से किसी पुरुष का उसकी पत्नी को पीटना जायज है. एनसीआरबी के आंकड़े सर्वे के इन नतीजों की पुष्टि करते हैं.
घरेलू हिंसा भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्रमुख अपराध है. सालाना कुल मामलों में से 35 प्रतिशत घरेलू हिंसा के ही होते हैं. संयुक्त राष्ट्र पूरी दुनिया में नारी-हत्या के मामलों की गिनती का आह्वान कर रहा है लेकिन बहुत से देश उन्हीं चुनौतियों से जूझ रहे हैं जो भारत में देखी जा रही हैं. कई सालों तक आंकड़े ऐसे प्रारूप में दर्ज नहीं किए गए हैं जहां नारी-हत्याओं को गिना जा सके. ऐसे सभी देशों में न्याय व्यवस्था, पुलिस और सरकार में बदलाव की जरूरत है.