इस बार 20 सितंबर से झारखंड के मनोहरपुर, नीमडी, गोमो एवं मुरी, बंगाल के कुस्तौर एवं खेमाशुली और ओडिशा के रायरंगपुर एवं बारीपदा स्टेशन पर हजारों लोग एक साथ रेल पटरियों पर डेरा डाल देंगे. इलाके से गुजरने वाले प्रमुख एनएच को भी रोक दिया जाएगा.
रांची : झारखंड, बंगाल और उड़ीसा में कुड़मी जाति को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर उनके संगठनों ने एक बार फिर से रेल रोको-रास्ता रोको आंदोलन का ऐलान कर दिया है. इन संगठनों का दावा है कि इस बार आंदोलन में लोग रेल पटरियों और सड़कों पर तब तक डटे रहेंगे, जब तक जनजातीय कार्य मंत्रालय कुड़मी को एसटी का दर्जा देने की बात लिखित तौर पर नहीं मान लेता. वहीं, दूसरी तरफ आदिवासियों के संगठन कुड़मी जाति की इस मांग पर विरोध जता रहे हैं. आदिवासी संगठनों का कहना है कि कुड़मियों को एसटी का दर्जा देने की मांग आदिवासियों के अस्तित्व पर हमला है.
कुड़मी संगठनों का दावा है कि इस बार 20 सितंबर से झारखंड के मनोहरपुर, नीमडी, गोमो एवं मुरी, बंगाल के कुस्तौर एवं खेमाशुली और ओडिशा के रायरंगपुर एवं बारीपदा स्टेशन पर हजारों लोग एक साथ रेल पटरियों पर डेरा डाल देंगे. इलाके से गुजरने वाले प्रमुख एनएच को भी रोक दिया जाएगा. आदिवासी कुड़मी समाज के केंद्रीय प्रवक्ता हरमोहन महतो ने कहा कि इस बार ‘रेल टेका, डहर छेका’ आंदोलन अभूतपूर्व होगा. इस दौरान झारखंड की खनिज संपदा को बाहर जाने से रोका जाएगा.
दरअसल झारखंड, बंगाल और ओडिशा में रहने वाले कुड़मी जाति के लोगों का दावा है कि 1931 तक मुंडा, मुंडारी, संथाली आदि के साथ कुड़मी भी आदिम जनजाति की सूची में शामिल था. देश आजाद होने के बाद जब संसद में प्रस्तूत जनजातियों की सूची में कुड़मी नहीं था. इसका लोकसभा में 15 सांसदों ने विरोध किया था. कुड़मी नेताओं का कहना है कि एक साजिश के तहत इसे आदिवासी की सूची से हटाया गया.
आदिवासी कुड़मी समाज के केंद्रीय प्रवक्ता हरमोहन महतो कहते हैं कि आदिवासियत हमारी ऐतिहासिक पहचान और अस्मिता का सवाल है. हम इस पहचान को वापस लेकर रहेंगे. उनका कहना है कि अर्जुन मुंडा जब 2004 में राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने ही कुड़मी जाति को आदिवासी बनाने की अनुशंसा केंद्र सरकार से की थी. अब जबकि वह केंद्र में जनजातीय मामले के मंत्री हैं, तो इस मामले में राज्यों से टीआरआई (ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट) की रिपोर्ट मांग रहे हैं. केंद्र सरकार टीआरआई रिपोर्ट के नाम पर हमें उलझाना चाहती है. इस बार हम किसी के झांसे में नहीं आने वाले हैं.
कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग संसद के अलावा झारखंड और बंगाल की विधान सभाओं में भी उठाई जाती रही है. बंगाल के सांसद अधीर रंजन चौधरी कई बार लोकसभा में यह मुद्दा रख चुके हैं. जमशेदपुर से सांसद रहे सुनील महतो, जमशेदपुर की पूर्व सांसद आभा महतो और ओडिशा के सांसद रवींद्र कुमार जेना भी संसद में इसे लेकर समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं.
कुड़मी समाज के राजेश महतो कहते हैं कि 18 से 20 सितंबर तक विशेष सत्र होना है. हमारे संगठन ने कुड़मी जाति से आने वाले सांसद विद्युत वरण महतो, चंद्रप्रकाश चौधरी, राज्यसभा सांसद ममता कुमारी और महतो से अपील है कि वे सत्र में कुड़मी समाज की इस मांग को फिर से उठाएं.
दूसरी तरफ, कुड़मियों की इस मांग पर आदिवासी समाज को सख्त ऐतराज है. यूनाइटेड फोरम ऑफ ऑल आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन के नेता सिद्धांत माडी का कहना है कि कुड़मियों की यह मांग आदिवासियों की पहचान पर हमला है. कुड़मी परंपरागत तौर पर हिंदू हैं और वे गलत आधार पर आदिवासी दर्जे के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं.
वहीं झारखंड की पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने पिछले दिनों आदिवासियों की एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, ‘कुड़मी समाज की नजर अब आदिवासियों की जमीन-जायदाद पर टिकी है. उनकी मंशा आदिवासियों के लिए सुरक्षित संवैधानिक पदों को हाईजेक करने की है. इसे आदिवासी समाज कतई बर्दाश्त नहीं करेगा.
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