वो अपने हिसाब से कानून की परिभाषा को बदल देते थे, क्योंकि उनको आंदोलनकारियों पर शिकंजा कसना होता था. अब ये काम हमारी सरकार करती है.
नई दिल्ली : देशद्रोह जैसे कानून समाज के लिए घातक हैं. जब ये कानून बनाया गया तब अंग्रेजी हुकूमत हमारे ऊपर शासन करती थी. वो अपने हिसाब से कानून की परिभाषा को बदल देते थे, क्योंकि उनको आंदोलनकारियों पर शिकंजा कसना होता था. अब ये काम हमारी सरकार करती है. चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड ने रविवार को यह बातें कहीं. वे महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे.
सीजेआई ने कहा कि अंग्रेजों के समय बनाए गए राजद्रोह सरीखे कई कानून समाज के लिए ठीक नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट इन पर विचार कर रहा है. चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक युग के कानूनों से जुड़े मामलों में, न्याय मिलेगा या नहीं यह सवाल सत्ता में बैठे लोगों पर निर्भर करता है. सीजेआई ने कहा कि जब ऐसे कानून बनाए गए थे, तब की तुलना में आज उनकी आकांक्षाएं अलग हैं.
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बताया कि राजद्रोह जैसे कानूनों का इस्तेमाल पहले औपनिवेशिक काल में स्वतंत्रता सेनानियों को बर्मा के मांडले से लेकर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सेलुलर जेल तक भेजने के लिए किया जाता था. लेकिन आज एक ही कानून की अलग-अलग आकांक्षाएं हैं, अंतर यह है कि जब कानून का उपयोग करुणा से किया जाता है, तो कानून न्याय करने में सक्षम होता है. मनमानी शक्ति का उपयोग करने पर यह अन्याय पैदा करता है. कानून वही है, यह इस पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कौन करता है. न्होंने कहा कि मेरा मतलब सिर्फ न्यायाधीशों और वकीलों से नहीं है, बल्कि मेरा मतलब समाज से है. नागरिक समाज यह निर्धारित करता है कि कानून का उपयोग कैसे किया जाएगा.
ध्यान रहे कि राजद्रोह कानून को लेकर सीजेआई ने केंद्र की आपत्ति के बावजूद राजद्रोह कानून से जुड़ा केस संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया है. ये केस बड़ी बेंच में भेजना इसलिए जरूरी था क्योंकि 1962 का केदारनाथ केस इस कानून की दूसरी ही परिभाषा देता है. वो मानता है कि राजद्रोह से जुड़ा कानून ठीक है. भारत में इसे लागू करने में कहीं भी किसी तरह से कोई दिक्कत नहीं है. केदारनाथ मामले में पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया था. लिहाजा जब तक सुप्रीम कोर्ट की उससे बड़ी बेंच उसके उलट कोई फैसला देती है तभी 1962 का कानून निष्प्रभावी हो सकता है.
हालांकि इसके पहले ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने राजद्रोह से जुड़े कानून पर रोक लगा दी थी. सरकारों को आदेश था कि इस कानून के तहत कोई नया केस दर्ज ना किया जाए. जो लोग इस मामले में जेल में बंद हैं, उनकी रिहाई पर कोई अड़ंगा ना लगाया जाए.
सीजेआई इस मामले को पहले ही संवैधानिक बेंच में भेजने पर आमादा थे. लेकिन अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन ने उनके दरख्वास्त की कि अगस्त तक इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए, क्योंकि सरकार इस कानून पर विचार कर रही है. सीजेआई ने उनका अनुरोध तो मान लिया. लेकिन जैसे ही अगस्त आया सीजेआई ने राजद्रोह से जुड़े केस को लिस्ट करने का आदेश दे दिया. जबकि सरकार उनसे केस की सुनवाई ना करने की गुहार करती रही.
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