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शौर्य केवल साधन मात्र है, साध्य नहीं है : वामन मेश्राम

Published On :    3 Jan 2021   By : MN Staff
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मैं ऐसे मानता हूं शौर्य केवल साधन मात्र है, साध्य नहीं है. केवल साधन का उपयोग करने के लिए किया गया साहस था, ऐसा नहीं कहा जा सकता है. इसलिए शौर्य एक केवल मात्र साधन है. लेकिन, हमें साध्य की भी जानकारी होना जरूरी है.



पुणे : मैं ऐसे मानता हूं शौर्य केवल साधन मात्र है, साध्य नहीं है. केवल साधन का उपयोग करने के लिए किया गया साहस था, ऐसा नहीं कहा जा सकता है. इसलिए शौर्य एक केवल मात्र साधन है. लेकिन, हमें साध्य की भी जानकारी होना जरूरी है. 


साध्य यह है कि इससे हमें मुक्ति मिली, इस लड़ाई में पेशवाओं के पराजय से मुक्ति मिली. इस बात को समझना जरूरी है. यह बात भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने 1 जनवरी 2021 को बामसेफ भवन पूना में भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा आयोजित 203वां भीमा कोरेगांव विजय क्रांति शौर्य दिवस के अवसर पर कही.


उन्होंने कहा कि पेशवाओं ने छत्रपति शिवाजी महाराज को जहर देकर मारा और जहर देकर मारने की वजह से जो हमारे पराक्रम का इतिहास है उसको उन्होंने खत्म करने की कोशिश की. इससे एक बात समझ में आती है कि मौर्य साम्राज्य के पतन का जो सबक था हमारे लोगों ने उसको ग्रहण नहीं किया, वह सब था इनफील्ट्रेशन और सेबोटेज. 


अंग्रेजी में इनफील्ट्रेशन का मतलब है घुसपैठ करना और सेबोटेज का मतलब है तहस-नहस करना. छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा ब्राह्मणों को इनफील्ट्रेट करने दिया गया. यह मौर्य साम्राज्य के पतन से जो सबक लिया जाना चाहिए था वह ना लेने का नतीजा है. हमें यह सबक ग्रहण करना चाहिए. इसलिए बामसेफ की स्थापना में ब्राह्मणों को इनफील्ट्रेट करने के लिए पाबंदी लगाई है.


वामन मेश्राम ने कहा, मायावती का ब्राह्मणीकरण हो गया, उसके सारे फैसले ब्राह्मणों के समर्थन में आते हैं. इस बात को अब लोग भी समझने लगे हैं. महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर ने मंदिरों को खोलने का अभियान चलाया. जिस कालाराम मंदिर के विरोध में डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने आंदोलन किया, 75 साल बाद प्रकाश आंबेडकर को ब्राह्मणों ने उसी मंदिर में ले जाकर वहां पूजा-अर्चना करवाई.


डॉ. बाबासाहब ने कहा था कि ‘आंदोलन कालाराम मंदिर का दर्शन करने के लिए नहीं है’. डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर इस आंदोलन को बंद करके राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में गए थे. उनकी अनुपस्थिति में दादा साहेब गायकवाड ने बाबासाहेब आंबेडकर से अनुमति मांगी की राम का जो आंदोलन है दर्शन करने का आंदोलन फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए. तब डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने गायकवाड के चिट्ठी का जवाब दिया. जवाब में लिखा, कि कालाराम मंदिर का सत्याग्रह राम का दर्शन करने के लिए शुरू किया गया आंदोलन नहीं था. 


अगर हमारा दुश्मन हमें हिंदू कहता है तो दूसरे हिंदुओं की तरह जैसे कालाराम मंदिर में जाकर दर्शन करने का अधिकार है तो इसी तरह से हमें भी दर्शन करने का बराबरी का अधिकार है. इसलिए बराबरी का अधिकार सिद्ध करने के लिए लड़ने की जिद पैदा करना, अपने हक और अधिकार हासिल करने के लिए संघर्ष करने की जिद पैदा करना, यह हमारे आंदोलन का लक्ष्य था. कालाराम मंदिर में जाकर दर्शन करना हमारा कोई लक्ष्य नहीं था.


उन्होंने कहा कि ये केवल इतिहास की ही बातें नहीं है वर्तमान में भी दिखाई देता है. ब्राह्मणों ने मौर्य साम्राज्य में इनफील्ट्रेशन किया  फिर उसी का सहारा लेकर उन्होंने सम्राट ब्रहद्रर्थ मौर्य की मौका देख कर हत्या की. अगर उनको इनफील्ट्रेशन एंड घुसपैठ करने का अवसर नहीं दिया गया होता तो वे ऐसा कर नहीं पाते. छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में भी हम लोग देखते हैं कि ब्राह्मणों ने जो इनफील्ट्रेशन किया इसकी वजह से उनको जहर देकर मारने में कामयाब हो गए. 


छत्रपति संभाजी महाराज को भी ब्राह्मणों ने पकड़वा कर औरंगजेब को दे दिया फिर उनकी हत्या की. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पेशवाओं और औरंगजेब का गुप्त समझौता था. उसका सबूत यह है कि औरंगजेब  ने जो चिट्ठी पेशवाओं को लिखी, उसमें लिखा कि तुम्हारे और हमारे बीच जो गुप्त समझौता हुआ है उसके अनुसार अगर आचरण नहीं किया तो जो हाल संभाजी का हुआ वहीं हाल आप लोगों का भी होगा. हो सकता है कि संभाजी की हत्या के बाद पेशवा मुगलों के साथ धोखाधड़ी कर रहे होंगे इसलिए उन्होंने चेतावनी देने के लिए पेशवाओं को चिट्ठी लिखी.


वामन मेश्राम ने कहा, जब लड़ाई हुई तो उस समय 28 हजार पेशवा नहीं थे, बल्कि 30 हजार थे. मगर सिद्धनाक और रायनाक 2 योद्धा ऐसे थे जिनका नाम सुनकर 2 हजार पेशवा ब्राह्मण सैनिक भाग गए. उनके सेना का सेना पति बापू गोखले नाम का ब्राह्मण था. बचे 28 हजार पेशवा ब्राह्मण तो हमारे शूरवीरों ने उनको परास्त किया. जबकि अंग्रेज लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन शूरवीरों ने वो लड़ाई लड़ी जीती. परास्त करने के बाद क्या हुआ? कि जो हमारे लोगों के कमर में झाडू बांधा गया था वह खत्म हो गया.



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इसलिए ये केवल शौर्य करने के लिए लड़ाई नहीं थी, शौर्य तो एक साधन मात्र है. उन्होंने कहा, पेशवाओं की राजधानी शनिवारवाड़ा से अंग्रेजों ने उत्तर प्रदेश के विठूर में भगा दिया. पेशवाओं को यहां से भगाने का श्रेय मराठा लोगों का है. इस तरह से ये केवल शौर्य दिखाने की घटना नहीं है, शौर्य तो एक साधन मात्र है. विजय हुआ और राज अंग्रेजों का आया मगर झाड़ू टलकाना खत्म हो गया और मराठा को भी पेशवाओं से मुक्ति मिल गई. 


आगे कहा कि जब विजय स्तंभ बनया गया तो 367 एकड़ जमीन दिया गया और उसकी देखरेख करने लिए एक मराठा को लगाया गया. अब वो जमीन केवल दो-चार एकड़ बची है. उस पर लिखा है कि इस विजय स्तंभ की गाथा हर साल बढ़नी चाहिए. अगर हम प्रेरणा लेना चाहते हैं जब हमें समझ में आयेगा तब प्रेरणा लेंगे. नहीं समझ में आयेगा तो कहां से प्रेरणा लेंगे. शौर्य हासिल करने, विजय प्राप्त करने वाले लोग नागवंशी लोग थे. महाराष्ट्र के ब्राह्मण राजवाड़े को ब्राह्मणों ने बहुत बड़ा इतिहासकार बताते हैं, उसने ये बाते लिखी है. 


डॉ. बाबासाहब कहते थे नाग लोग अंडे से निकलने वाली प्रजाति नहीं हैं ये नाग इंसानी प्रजाति हैं. आज महाराष्ट्र में ओबीसी की मंडल कमीशन में 272 जातियां हैं. यानी जिन लोगों ने महाराष्ट्र की स्थापना की बाद में जातियां उत्पन्न हुई. ये लोग बृहद्रथ मौर्य की हत्या के बाद विखरे और विखरे लोगों ने महाराष्ट्र की स्थापना की. इन लोगों की पहचान कैसे खत्म हुई? तो उन्हीं लोगों को 4-5 सौ जातियों के टुकड़े किए गए. यानी नाग लोगों की जातियां बनाई गई. 



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