संसद के दोनों सदनों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से कुछ घंटे पहले सोमवार को लोकसभा में ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने विद्युत संशोधन विधेयक 2022 पेश किया गया.
नई दिल्ली : संसद के दोनों सदनों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से कुछ घंटे पहले सोमवार को लोकसभा में ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने विद्युत संशोधन विधेयक 2022 पेश किया गया. इसमें बिजली वितरण क्षेत्र में बदलाव करने, नियामक तंत्र को मजबूत बनाने एवं व्यवस्था को सुसंगत बनाने का प्रस्ताव किया गया है. इसका कांग्रेस, द्रमुक और तृणमूल सहित कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों ने विरोध कर इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया.
इसके बाद मंत्री आर के सिंह ने कहा कि वह इस विधेयक को विचार के लिये संसद की स्थायी समिति को भेजने का आग्रह करते हैं. मंत्री ने कहा, ‘मैं इस विधेयक को विचारार्थ संसद की स्थायी समिति के समक्ष भेजने का आग्रह करता हूं. उस समिति में सभी दलों का प्रतिनिधित्व होता है, ऐसे में इसके विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा हो सकेगी.’
इससे पहले, आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि वह इस विधेयक को पेश किये जाने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह संघीय ढ़ांचे का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा कि बिजली का विषय समवर्ती सूची में आता है, ऐसे में इस विषय पर सभी राज्यों एवं संबंधित पक्षकारों के साथ चर्चा करना जरूरी है लेकिन ऐसा नहीं किया गया. प्रेमचंद्रन ने कहा कि इस विधेयक के प्रावधानों से उपभोक्ताओं एवं किसानों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और निजी क्षेत्र की कंपनियों का सार्वजनिक आधारभूत ढांचे का लाभ उठाने का मार्ग प्रशस्त होगा.
वहीं, कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि इस प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से मूल कानून के उद्देश्य प्रभावित हो सकते हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि यह निजीकरण की दिशा में कदम है. कांग्रेस के ही अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह विधेयक स्पष्ट रूप से सहकारी संघवाद का उल्लंघन करता है तथा राज्य सरकारों के अधिकारों को कमतर करता है.
द्रमुक के टी आर बालू ने भी प्रस्तावित विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह लोगों के हितों के प्रतिकूल है. वहीं, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि यह विधेयक लोक विरोधी है और सार्वजनिक बिजली क्षेत्र को निजी क्षेत्र को देने का मार्ग प्रशस्त करता है. बीजद के पिनाकी मिश्रा ने कहा कि विधेयक पेश करने के समय केवल विधायी आधार पर विषय उठाये जा सकते हैं और अगर मंत्री का कहना है कि इसे स्थायी समिति को भेजा जायेगा, तब वहां चर्चा हो जायेगी.
उधर पंजाब के सीएम भगवंत मान ने सोमवार को संसद में पेश इस विधेयक को राज्यों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला करार दिया. उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस तरह की कुटिल चाल से संघीय ढांचे को कमजोर कर रही है. मान ने कहा कि यह केंद्र सरकार का राज्यों की शक्ति को कमजोर करने का एक और प्रयास था. उन्होंने कहा कि केंद्र को राज्यों को कठपुतली नहीं समझना चाहिए. मान ने यहां जारी एक बयान में कहा, ‘हमारे लोकतंत्र की संघीय भावना को कमजोर करने के भारत सरकार के इस प्रयास के खिलाफ राज्य चुप नहीं बैठेंगे.’ उन्होंने कहा कि राज्य अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सड़क से लेकर संसद तक लड़ेंगे.
बिजली मंत्री आरके सिंह ने मसौदा कानून को ‘जन समर्थक और किसान समर्थक’ बताया. सिंह ने कहा कि विधेयक में किसानों को मौजूदा बिजली सब्सिडी में कटौती का कोई प्रावधान नहीं है. बता दें कि संयुक्त किसान मोर्चा ने हाल ही में इस विधेयक को लाने के खिलाफ सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि इसे वापस लेना साल भर चलने वाले किसान आंदोलन की प्रमुख मांगों में से एक है. मोर्चा के अनुसार, ’9 दिसंबर, 2021 को सरकार ने मोर्चा को लिखे पत्र में कहा था कि बिजली संशोधन विधेयक के उन प्रावधानों पर सभी हितधारकों के साथ चर्चा होगी जो किसानों को प्रभावित करते हैं, पर कोई चर्चा नहीं हुई है
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