मद्रास : ईडब्लूएस को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार बुरी तरह से फंस चुकी है. मद्रास हाईकोर्ट ने दायर याचिका को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि जब आठ लाख रुपए से कम (7,99,999) आय वाले लोग ईडब्लूएस यानी गरीब हैं तो ढाई लाख रुपए आय वाले अमीर कैसे हुए और ढाई लाख रुपए आय वाले लोगों को आयकर क्यों देना चाहिए? मद्रास हाई कोर्ट ने इसी पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. अब केन्द्र सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि जवाब क्या दे. न्यायमूर्ति आर महादेवन और न्यायमूर्ति सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सोमवार को केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय, वित्त कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय को नोटिस देते हुए बाकी पेज 8 पर का आदेश दिया और मामले को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया.
गौरतलब है कि हाईकोर्ट में यह याचिका डीएमके पार्टी की एसेट प्रोटेक्शन काउंसिल के कुन्नूर सीनीवासन ने की है. याचिका करने वाले ने हाल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाया है. जनहित अभियान बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्लूएस श्रेणी के लोगों के लिए 10 फीसद आरक्षण की व्यवस्था को सही ठहराया है. सीनिवासन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साबित हो गया है कि 8 लाख से कम सालाना आय वाले गरीब हैं. ऐसे लोगों से इनकम टैक्स वसूलना ठीक नहीं हैं. ये ऐसे लोग हैं जो पहले से ही शिक्षा और अन्य क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं. वर्तमान आयकर अधिनियम अनुसूची सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ है. क्योंकि, इससे आर्थिक रूप से गरीब नागरिक से कर एकत्र होगा और वे उच्च समुदाय के लोगों के साथ स्थिति या शिक्षा या आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के ईडब्लूएस आरक्षण के फैसले को सही बताया है जिसके तहत अनारक्षित जातियों के लोगों में से जिन की वार्षिक कमाई 7,99,999 रुपए तक है, उनको आर्थिक रूप से न केवल पिछड़ा माना है, बल्कि उनके 10 प्रतिशत आरक्षण का फायदा भी दिया जा रहा है. असल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईडब्लूएस पर लिया गया फैसला संविधान के खिलाफ है. क्योंकि, संविधान में आरक्षण का प्रावधान उन लोगों के लिए किया गया है जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं.
आरक्षण का संबंध रत्ती भर भी अमीरी-गरीबी से नहीं है. आरक्षण नौकरी का नहीं, जनसंख्या के अनुपात में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का मामला है. लेकिन, केन्द्र सरकार में बैठे विदेशी ब्राह्मणों ने संविधान के विरोध में जाकर लगातार नाजायज फैसले करते आ रहे हैं. मजेदार बात देखिए कि ईडब्लूएस में उन सवर्णों गरीब माना गया है जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपये है. जबकि, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा ढाई लाख रुपये आय वालों से इनकम टैक्स लिया जाता है. सवाल फिर वहीं है कि जब आठ लाख आय वाले गरीब हैं तो ढाई लाख आय वाले अमीर कैसे हुए और ढाई लाख वाले लोग इनकम टैक्स क्यों दे.