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ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर

Published On :    24 Nov 2022   By : MN Staff
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संविधान में आरक्षण का आधार आर्थिक न होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में से तीन जजों ने 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर मुहर लगाई.




भोपाल :  
संविधान में आरक्षण का आधार आर्थिक न होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में से तीन जजों ने 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर मुहर लगाई. जिसकी सोशल मीडिया में काफी आलोचना की गई. अब सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक याचिका दायर कर शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण बरकरार रखने वाले उसके फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया. कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर सात नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है.

बता दें कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मिलने वाले ईडब्ल्यूएस कोटे पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया था। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 3ः2 के बहुमत से संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा. जो शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्रदान करता है.

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस जेबी परदीवाला ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर सहमति जताई है। तीनों जजों ने यह माना कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन नहीं करता है। वहीं सीजेआई जस्टिस यूयू ललित व जस्टिस रवींद्र भट ने इस पर असहमति जाहिर की थी. उन्होंने 103 वां संशोधन को गैर संवैधानिक करार दिया था. अब इस निर्णय पर समीक्षा याचिका दायर की गई है. मध्य प्रदेश की कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की है.

फैसला आने के बाद कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा था कि वे ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध नहीं कर रहे, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की उच्च जाति समर्थक मानसिकता का विरोध कर रहे हैं. जब अजा-जजा को आरक्षण की बात आती है तो वह इंदिरा साहनी मामले की दुहाई देकर अजा-जजा-ओबीसी को 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का हवाला दिया जाता है. आज संविधान का हवाला देकर कहा जा रहा है कि नहीं, आरक्षण की कोई सीमा नहीं है.

तब जस्टिस ललित और जस्टिस भट्ट ने जस्टिस भट्ट ने संविधान संशोधन पर अपनी असहमति व्यक्त की और कहा था कि यह संशोधन सामाजिक न्याय के ताने-बाने और बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है. वहीं तीन जजों ने 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण के समर्थन में फैसला सुनाया था.


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