सरसंघचालक मोहन भागवत का एक भाषण दो-चार दिनों से चर्चा में है. इसमें वे भारत को विश्व गुरु बनाने की बात करते हुए दिखाई दे रहे है. जिस केंद्र सरकार को वह नियंत्रित कर रहे है, वह सरकार देश के ही नागरिकों के विरोध में काम कर रही है और बनिया पूंजीपतियों की जेब भर रही है.
नई दिल्ली : सरसंघचालक मोहन भागवत का एक भाषण दो-चार दिनों से चर्चा में है. इसमें वे भारत को विश्व गुरु बनाने की बात करते हुए दिखाई दे रहे है. जिस केंद्र सरकार को वह नियंत्रित कर रहे है, वह सरकार देश के ही नागरिकों के विरोध में काम कर रही है और बनिया पूंजीपतियों की जेब भर रही है. पर चर्चा विषय ये नहीं है और न ही इन बातों के लिए मोहन भागवत का स्पीच चर्चा में है. दरअसल, पूरे स्पीच में से लगभग एक मिनट के उनके बयानों पर सोशल मीडिया से लेकर तमाम जगहों पर चर्चा हो रही है. हम उन्हीं बयानों को समझने का प्रयास करेंगे.
पहले यह जान लेते है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने क्या कहा है. उस एक मिनट में उन्होंने दो से तीन मुद्दे बयां किए है. जिसमें पहला मुद्दा ये कि देश में असुरी ताकत बढ़ रही है. दूसरा ये कि वह मर-मिटने के डर से हमें मारने-मिटाने के लिए रास्ते पर उतरकर आमने-सामने का संघर्ष करने के लिए तैयार है, और तिसरा ये कि वह समाज में कुछ ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे है जिससे हमारे बीच में फुट डाली जाएगी. पर मोहन भागवत किन असुरों की बात कर रहे है, ये उन्होंने नहीं बताया. उन्होंने केवल इशारों में कहा कि वह कौन लोग है ये आपको बताने की जरूरत नहीं है. भागवत को उस वक्त सुनने के लिए आए हुए लोग संघ परिवार से जुड़े हुए थे. इसलिए उन्हें भागवत किन ‘असुरों’ की बात कर रहे है, यह समझमें आ गया, लेकिन सामान्यतः जो संघ परिवार से जुड़े हुए लोग नहीं है, उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि सरसंघचालक किस ओर इशारा कर रहे है. मोहन भागवत की वह बातें उन लोगों के भी समझ में आ गई जो लोग संघ परिवार के ब्राह्मणवादी विचारधारा के बिलकुल विरोधी विचारधारा को अपनाकर समाज में काम कर रहे है.
वैसे तो असुर यह शब्द पौराणिक कथाओं का है, लेकिन उसे समझने के लिए हमें उन पौराणिक कथाओं में जाने की जरूरत नहीं है बल्कि आप इतना जान लीजिए कि ब्राह्मणों ने अपने घोर विरोधी या शत्रुओं को ही असुर कहा था. असुर वह जो सुरा यानी मद्यपान यानि जो शराब नहीं पीते, क्योंकि ब्राह्मण सुरा यानि मद्यपान यानी शराब पीने वाले लोग थे, इसलिए वह अपने आपको ‘सुर’ कहते थे. ब्राह्मणों ने उनके दुश्मनों यानि मूलनिवासी बहुजनों के लिए उनके धर्म ग्रंथों में असुर, दैत्य, दानव, राक्षस जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया, वहीं खुद के लिए देव, भूदेवता आदि शब्दों का उपयोग किया. सरसंघचालक ने जो असुर शब्द का प्रयोग किया, वह असुर वहीं है, जिन्हें बुद्ध ने बहुजन कहा और आज संविधान जिन्हें एससी, एसटी और ओबीसी कहता है. तो क्या सरसंघचालक सभी एससी, एसटी और ओबीसी की बात कर रहे है? क्या ये सभी लोग आज संघ परिवार व उसकी विचारधारा के विरोधी है? ऐसा तो बिलकुल नहीं है. यदि ऐसा होता तो खुद को ओबीसी बताने वाले देश के प्रधानमंत्री ने भी ब्राह्मण व संघ के विरोध में काम किया होता. मोहन भागवत ने जिन असुरों की बात की, वह विशेष रूप से ब्राह्मण व संघ के विरोध में काम करने वाले लोग है. जिनसे सरसंघचालक इतने डरे हुए है कि वह उनका नाम भी नहीं लेना चाहते.
दरअसल, मोहन भागवत जिन लोगों या संगठन की बात कर रहे है, जिनसे उन्हें व उनकी विचारधारा को खतरा है. यह वहीं लोग है जिन्होंने पिछले साल 6 अक्टूबर 2022 को लाखों की संख्या में संघ मुख्यालय पर प्रोटेस्ट मार्च निकाला था. जी हां, मोहन भागवत बात कर रहे है, वामन मेश्राम व उनके संगठन बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा व बहुजन क्रांति मोर्चा की. भागवत की नजर में यही है आज के असुरों की ताकतें, जो ब्राह्मणवादी विचारधारा मिटाने के लिए जी-जान लगाकर काम कर रहे है. इसे समझने के लिए कुछ सबुत उदाहरण के तौर पर देना जरूरी है, ताकि हमारी यह बात अतार्कीक या यह भी न लगे की हम कुछ बढ़ा बढ़ाकर बोल रहे है. जैसा कि हमने पहले ही आपको ‘असुर’ शब्द के बारे में बताया कि ब्राह्मणों ने वह शब्द केवल यहां के मूल निवासियों के लिए ही उपयोग में लाया है.
ब्राह्मण धर्म को अगर मुसलमानों से खतरा होता, जैसा की आम तौर पर ब्राह्मणवादी लोग प्रचार करते है, तो भागवत ‘असुर’ के अलावा ‘म्लेंच्छ’ इस शब्द का उपयोग करते. आज की तारीख़ में बामसेफ और भारत मुक्ति मोर्चा एससी, एसटी, ओबीसी और धर्मपरिवर्तीत अल्पसंख्यांक लोगों का सबसे बड़ा और ताकतवर संगठन है. इसके अलावा बहुजन क्रांति मोर्चा उन्हीं मूलनिवासी बहुजन समाज के लाखों संगठनों के लिए बनाया गया एक राष्ट्रीय मंच है, जिसमें लाखों संगठन समान उद्देश्य के लिए इकठ्ठा आ रहे है. इनके मुकाबले का कोई संगठन आज मूलनिवासी बहुजन समाज में नहीं है. इसलिए मोहन भागवत मूलनिवासी बहुजनों (असुरों) के संगठीत शक्ति के बारे में ही बोल रहे है, यह स्पष्ट होता है. और वह शक्ति बामसेफ-भारत मुक्ति मोर्चा के अलावा दुसरी कोई नहीं है. ये था पहला सबूत कि मोहन भागवत बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा व उनके नेता वामन मेश्राम के बारे में ही बोल रहे है.
मोहन भागवत ने जो दूसरी बात कहीं वह ये है कि, ये असुरी ताकतें हमें मारने-मिटाने के लिए रास्ते पर उतरकर संघर्ष कर रही है. बामसेफ संगठन का निर्माण व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य से किया गया है. यह उद्देश्य हासिल करने के लिए रास्ते पर उतरकर संघर्ष करना लाज़मि है. या इसे दुसरे शब्दों में कहें कि संघर्ष किए बिना व्यवस्था परिवर्तन नहीं किया जा सकता. बामसेफ ने संघर्ष करने के लिए ही भारत मुक्ति मोर्चा नाम का एक अलग संगठन बनाया है. भारत मुक्ति मोर्चा के माध्यम से साल 2011 में मूलनिवासी बहुजन विरोधी केंद्र सरकार का बजट जलाने का राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया था. उसके बाद ओबीसी की जाति आधारित गिनती हो इसके लिए रास्ते पर उतरकर आंदोलन करने व जनगणना पर बहिष्कार डालने जैसे अभियान भी चलाया था. उसी का नतीजा है कि आज ओबीसी जातिय गिनती का मुद्दा राष्ट्रीय चर्चा का बना हुआ है. इतना ही नहीं बल्कि ईवीएम के विरोध में देशव्यापी जन जागरण व आंदोलन करने में भी भारत मुक्ति मोर्चा की अहम भूमिका थी.
उसी संगठन के माध्यम से 6 अक्टूबर 2022 को संघ मुख्यालय पर साढ़े तीन लाख लोगों का प्रोटेस्ट मार्च निकाला गया था. इससे पहले ही संघ के लोग इतना घबरा गए कि संघ मुख्यालय को ताला लगाकर वहां से भाग गए. यह कोई हमारी कही हुई बातें नहीं है बल्कि कई मीडिया वालों ने इसकी दिन भर ख़बरें चलाई थी. साढ़े तीन लाख लोग किसी एक जाति या समूह के नहीं थे. बल्कि आरएसएस जिन एससी, एसटी और ओबीसी लोगों को हिंदू कहता है और हिंदू कहकर उनका राजनीति में उपयोग करता है, ये वहीं लोग थे. भारत मुक्ति मोर्चा की स्थापना से पहले जो लोग बामसेफ पर ये आरोप लगा रहे थे कि बामसेफ के लोग रास्ते पर नहीं उतरते, वे लोग आज कल कहीं पर दिखाई नहीं देते. मूलनिवासी बहुजनों के लिए रास्ते की लड़ाई अब केवल भारत मुक्ति मोर्चा ही लड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. इसलिए मोहन भागवत बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा की ओर ही इशारा कर रहा है, इसमे कोई दो राय नहीं है.
तिसरी बात मोहन भागवत ने कही कि ये लोग ऐसा वर्णन करेंगे ऐसे संवाद चलाएंगे कि हम ही आपस में बट जाएंगे और दुश्मन बन जायेंगे. शायद मोहन भागवत का इशारा बामसेफ द्वारा चलाए जा रहे उस अभियान की ओर है, जिसमें बामसेफ राजपूतों या क्षत्रियों को मूलनिवासी बता रहे है. जिससे 3.5 फीसदी ब्राह्मण और भी ज्यादा स्पष्ट रूप से नंगे हो रहे है. या भागवत शायद ये कह रहे है कि जिन एससी, एसटी और ओबीसी को वे हिंदू के नाम से अपनी राजनीति के लिए इकठ्ठा करते है और इस्तेमाल करने के बाद फेंक देते है, उन्हें बामसेफ-भारत मुक्ति मोर्चा के लोग ब्राह्मण धर्म व ब्राह्मणों की विचारधारा से अलग कर रहे है. इसलिए भी ब्राह्मण नंगे हो रहे है. केवल यही नहीं बल्कि बामसेफ के एससी, एसटी, ओबीसी व राजपूतों या क्षत्रियों को ब्राह्मणी विचारधारा से अलग करने के बाद वे लोग ब्राह्मण धर्म व उनकी विचारधारा का विरोध करने लगते है. उनके धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक वर्चस्व को मानने से इंकार कर देते है. इसी वहज से ब्राह्मण जो इनके दम पर बहुसंख्य बन बैठा होता है, वह इनके अलग होने से अल्पसंख्यक हो जाता है. और वह दोबारा राजनीतिक सत्ता पर काबिज़ नहीं हो सकता. जिसकी वजह से ब्राह्मणों की सामाजिक व धार्मिक मान्यताएं खतरे में आ जाती है, अतः उनका अस्तित्व ही खतरे में आ जाता है.
जैसे किसी विशाल पेड़ को काटने के बजाए, यदि उस मिट्टी को जड़ों से अलग कर दिया गया, जिसने उसे पकड़कर रखा है, तो वह पेड़ अपने आप ही मर जाएगा. ठीक वैसे ही बामसेफ-भारत मुक्ति मोर्चा व उसके नेतृत्वकर्ता वामन मेश्राम ब्राह्मणवाद की जड़ों के साथ कर रहे है. जिन एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों ने आज तक जाने-अनजाने में ब्राह्मणवाद की जड़े मजबूत करने का काम किया, वामन मेश्राम उन एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को उससे अलग कर रहे है, ताकि ब्राह्मणवाद का पेड़ अपने आप ही मर जाए. इसी वजह से मोहन भागवत नाम न लेते हुए बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा व वामन मेश्राम का जिक्र कर ड़रे हुए नजर आ रहे है. ब्राह्मण जिन्हें हिंदू कहते है और हिंदू कहकर उनका अपनी राजनीति के लिए उपयोग करते है, दरअसल, भारत का संविधान उन्हें एससी, एसटी, ओबीसी कहता है. यहीं उनकी संवैधानिक पहचान है. यदि आरएसएस ये कहता है कि बामसेफ के लोग एससी, एसटी और ओबीसी को एससी, एसटी और ओबीसी के नाम से संगठित कर हिंदू समाज में फूट डालने का काम कर रहे है, तो इससे ये सिद्ध हो जाता है कि आरएसएस संविधान को नहीं मान रहा, बल्कि संविधान ने दी हुई पहचान को मिटाने के लिए काम कर रहा है. इससे यहीं सिद्ध होता है कि संघ परिवार भारतीय संविधान के विरोध में काम कर रहा है. वैसे तो हिंदू शब्द मुसलमानों ने दी हुई गालि है, ऐसा स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश में कहा है. फरवरी 2023 में स्वामी दयानंद सरस्वती के 200वें जयंती का कार्यक्रम खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. वही दयानंद सरस्वती हिंदू शब्द को मुसलमानों ने दी हुई गालि बता रहे है. संघ परिवार का एससी, एसटी, ओबीसी को हिंदू कहना न केवल भारतीय संविधान का अपमान है बल्कि उनके पुरखें स्वामी दयानंद सरस्वती का भी बहोत बड़ा अपमान है.
संघ परिवार बामसेफ और वामन मेश्राम का सीधा नाम लेकर विरोध नहीं कर रहा, पर खुलकर विरोध करने का काम करते हुए नजर आ रहा है. ऐसे में एक बेहद ही महत्वपूर्ण सवाल उभरता है कि आखिरकार संघ परिवार पर ऐसा करने की नौबत क्यों आई? जब की उन्होंने 5 अप्रैल 2022 को ही बामसेफ संगठन को तोड़ने की कोशिश की थी. जिसके लिए उन्होंने बामसेफ में कार्यरत गद्दार वीरशी लखोटा लालन (वी.एल.मातंग) व कमलाकांत (कुमार) काले जैसे कुछ डरपोक व आर्थिक रूप से भ्रष्ट लोगों का इस्तेमाल किया था. लेकिन वे गद्दार बामसेफ को तोड़ने में कामयाब नहीं हुए और संघ परिवार ने जैसे नुकसान होने की अपेक्षा की थी, वैसा नुकसान वह बामसेफ को नहीं पहूंचा पाए. इसी वजह से बामसेफ के विरोध की कमान फिर एक बार आरएसएस ने अपने हाथ में ली, ऐसा दिखाई दे रहा है. मोहन भागवत भले ही बामसेफ व वामन मेश्राम का नाम लिए बगैर ही विरोध कर रहे है, पर अब सामान्य लोग भी जान रहे है कि सरसंघचालक किस ओर इशारा कर रहे है. ब्राह्मणों के वेदों एवं पुराणों में देव-दानवों की या सुर-असुरों की लड़ाई का जिक्र आता है. मान्यवर कांशीरामजी ने इस लड़ाई को 15 फीसदी बनाम 85 फीसदी की लड़ाई का नाम दिया था. आज वामन मेश्राम ने इस लड़ाई को संघ परिवार बनाम मूलनिवासी परिवार का नाम दिया है और यही भारत की मुल लड़ाई है.
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