नई दिल्ली : भारत की राजनीति में अपराधिक छवि वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. हैरान करने वाली बात है अधिकांश पार्टियां ऐसे लोगों को चुनाव में टिकट देते है और वे डरा धमका कर जनता से वोट लेते है और चुनकर आते है. इस बीच न्यायमित्र और वकील विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक रिपोर्ट में अपराध में दोषी ठहराए गये विधायकों और सांसदों के चुनाव लड़ने पर आजीवन बैन लगाने की मांग की है.
दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और सांसदों/विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका में हंसारिया को न्यायमित्र नियुक्त किया गया था. कानून के तहत उन सभी मामलों में, जहां राजनेताओं को कारावास की सजा दी गई है, चुनाव लड़ने से अयोग्यता उनकी रिहाई के बाद से केवल छह साल की अवधि तक जारी रहती है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त न्यायमित्र विजय हंसारिया ने अपनी 19वीं रिपोर्ट दाखिल की. इस दौरान कोर्ट में एमिकस क्यूरी ने रिपोर्ट में इस बात का समर्थन करते हुए कहा कि अगर कोई नेता दोषी है तो उसके चुनाव लड़ने पर 6 साल के बैन के बजाए आजीवन प्रतिबंध लगाया जाना चहिए. दरअसल, एमिक्स क्यूरी सांसद और विधयकों के खिलाफ लंबित मामलों का तेजी से निपटाने की निगरानी कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुच्छेद 8 को चुनौती दी गई है. एमिकस क्यूरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 और लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत दोषी ठहराए जाने के बाद स्थायी अयोग्यता और/या वैधानिक कार्यालय धारण करने से हटाने का प्रवधान है.
हंसारिया ने रिपोर्ट में कहा कि धारा 8 के तहत अपराध को गंभीरता और गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 में प्रावधान है कि अयोग्यता रिहाई के बाद से केवल छह साल की अवधि के लिए होगी. दोषी और व्यक्ति रिहाई के छह साल बाद चुनाव लड़ने के लिए पात्र है, भले ही उसे बलात्कार जैसे जघन्य अपराध या नशीली दवाओं से निपटने या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल या भ्रष्टाचार में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया गया हो.
अपनी रिपोर्ट के एक अन्य भाग में हंसारिया ने प्रस्तुत किया कि एमपी/एमएलए मामलों के लिए विशेष न्यायालय को उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों और निपटान की मासिक रिपोर्ट और पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों की देरी के कारणों की मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जा सकता है.
हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं और कुल 5175 लंबित मामलों में से 2116 से अधिक मामले 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं. देशभर में सांसदों और विधायकों के खिलाफ अलग-अलग हाई कोर्ट में 1377 पेंडिंग केसेज के साथ उत्तर प्रदेश पहले नंबर है. पूरे देश के मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों पर हुए एक चौथाई क्रिमिनल केस अकेले यूपी से हैं. इस लिस्ट 546 केसों के साथ बिहार दूसरे नंबर पर है.
शीर्ष अदालत सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों की शीघ्र सुनवाई और सीबीआई तथा अन्य एजेंसियों द्वारा त्वरित जांच की मांग करने वाली अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर समय-समय पर कई निर्देश पारित करती रही है. याचिका में दोषी व्यक्तियों को विधायक/सांसद का चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल बनाने या राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनने से रोकने के निर्देश देने की भी मांग की गई है.