महबूबा मुफ्ती बोली- अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जम्मू-कश्मीर के लिए मौत की सजा
श्रीनगर/दै.मू.समाचार
सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखने के बाद पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने को बरकरार रखने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मौत की सजा से कहीं से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि यह भारत की अवधारणा को विफल करता है, जिसके साथ मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य को 1947 में शामिल किया गया था. मुफ्ती ने एक्स पर पोस्ट किए गए पांच मिनट के एक वीडियो संदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत की अवधारणा को विफल करने वाला है.
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि संसद में लिए गए एक असंवैधानिक और अवैध निर्णय को आज कानूनी घोषित किया गया. यह न केवल जम्मू कश्मीर के लिए मौत की सजा है, बल्कि भारत की अवधारणा को भी विफल करता है. पीडीपी चीफ ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 370 अस्थायी था, इसी कारण इसे हटाया गया. यह न केवल हमारी हार है, बल्कि भारत की अवधारणा की भी विफलता है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लोगों से आग्रह किया कि वे शीर्ष न्यायालय के फैसले से निराश न हों. उन्होंने कहा, ‘निराश न हों, उम्मीद न छोड़ें. जम्मू कश्मीर ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं. न्यायालय का फैसला महज एक पड़ाव है, यह हमारा गंतव्य नहीं है. इसे अंत मानने की गलती न करें. हमारे विरोधी चाहते हैं कि हम उम्मीद खो दें और हार स्वीकार कर लें. लेकिन ऐसा नहीं होगा.’
पीडीपी प्रमुख ने कहा कि जम्मू कश्मीर में संघर्ष एक राजनीतिक लड़ाई है, जो दशकों से जारी है. उन्होंने कहा, ‘कोई फैसला अंतिम नहीं है, उच्चतम न्यायालय का फैसला भी नहीं. यह एक राजनीतिक लड़ाई है जो कई दशकों से जारी है. हमारे लोगों ने बलिदान दिया है और हम बीच में लड़ाई नहीं छोड़ेंगे.’ मुफ्ती ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 370 को संविधान का अस्थायी प्रावधान घोषित किए जाने से उन ताकतों को बल मिला है जो दावा करती हैं कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय अस्थायी है.
जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम ने कहा, ‘1947 में एक सरकार थी, एक संसद थी और एक संविधान बनाया गया था. जम्मू कश्मीर के लोगों से वादे किए गए और विशेष राज्य का दर्जा दिया गया. 77 साल बाद एक और पार्टी आई, जिसने सत्ता में आने पर अनुच्छेद 370 हटाने की बात कही और उसने ऐसा किया. यह हमारी नहीं बल्कि देश की विफलता है. उन्होंने हमें धोखा दिया.’
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में कहा गया कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था. जम्मू-कश्मीर को किसी भी रूप में आंतरिक संप्रभुता हासिल नहीं थी. विशेष प्रावधान को समाप्त करने के पीछे किसी तरह की दुर्भावना नहीं है. यह पूरी प्रक्रिया वैध और संवैधानिक है. कोर्ट के इस फैसले के बाद स्थानीय राजनीतिक दलों के नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है. नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से निराश हैं, लेकिन निरुत्साहित नहीं हैं. अब्दुल्ला ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘निराश हूं, लेकिन निरुत्साहित नहीं हूं. संघर्ष जारी रहेगा.’ उन्होंने कहा कि भाजपा को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने में दशकों लगे और वे भी लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं.
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के अध्यक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, ‘एक उम्मीद थी क्योंकि कई चीज़ों में हमने कहा था कि जो कोर्ट कहेगा वह आखिरी फैसला होगा. मैं बुनियादी तौर पर कहता हूं कि इसे खत्म करना ग़लत था. इसे करते वक्त जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों से पूछा नहीं गया. हम अदालत के खिलाफ नहीं जा सकते लेकिन इस फैसले से हम,जम्मू-कश्मीर के लोगों को अफसोस है.
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन ने अपने एक्स-पोस्ट पर कहा, ‘अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला निराशाजनक है. न्याय एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के लोगों से दूर है. अनुच्छेद 370 भले ही कानूनी रूप से खत्म कर दिया गया हो, लेकिन यह हमेशा हमारी राजनीतिक आकांक्षाओं का हिस्सा बना रहेगा.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और महाराजा हरि सिंह के बेटे करण सिंह ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर में लोगों का एक वर्ग जो इस फैसले से खुश नहीं होगा, मेरी सलाह है कि उन्हें ऐसा करना चाहिए. अपरिहार्य को स्वीकार करें और उन्हें इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि अब यह किया जा चुका है और सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई को बरकरार रखा है. इसलिए अब अनावश्यक रूप से दीवार पर सिर मारने का कोई मतलब नहीं है. अब उन्हें अगले साल चुनाव की लड़ाई में लगना चाहिए.
माना जा रहा है कि अब किसी भी सरकार के लिए इसे दोबारा अमल में लाना असंभव होगा. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सीओ 273 को वैध माना है. इसलिए अनुच्छेद 370 (3) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जिससे इसे फिर अमल में लाया जा सके. अगर 370 (3) होता तो भविष्य में कोई सरकार पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल कर सकती थी. अब अगर कोई सरकार ऐसा करना चाहे तो उसे अनुच्छेद 368 के रास्ते जाना होगा. जिसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत और पचास प्रतिशत विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए जो कि असंभव लगता है.