सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को रखा बरकरार, कहा- जम्मू कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखा है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हैं. इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है. आज सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने फैसला सुनाया.
कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति को आर्टिकल 370 हटाने का हक. आर्टिकल 370 हटाने का फैसला संवैधानिक तौर पर सही था. संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर पर लागू होते हैं. ये फैसला जम्मू कश्मीर के एकीकरण के लिए था. अनुच्छेद 370 हटाने में कोई दुर्भावना नहीं थी. जम्मू कश्मीर में जल्द चुनाव के लिए कदम उठाए जाएं. 30 सितंबर 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव हों. जम्मू कश्मीर में जल्द राज्य का दर्जा बहाल हो. आर्टिकल 370 एक अस्थाई प्रावधान था. जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. जम्मू कश्मीर के पास कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं थी. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लद्दाख को अलग करने का फैसला वैध था.
सीजेआई ने कहा, जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता का कोई जिक्र नहीं था. हालांकि, भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसका उल्लेख मिलता है. भारतीय संविधान आने पर अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर पर लागू हुआ. अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के संघ के साथ संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए नहीं था, और राष्ट्रपति घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है. अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त होने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है.
सीजेआई ने कहा, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की अधिसूचना देने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है. अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने का अधिकार जम्मू-कश्मीर के एकीकरण के लिए है. राष्ट्रपति द्वारा 370 निरस्त करने का आदेश संविधानिक तौर पर वैध है. सीजेआई का मानना है अब प्रासंगिक नहीं है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की घोषणा वैध थी या नहीं. सीजेआई ने दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने से इनकार किया, क्योंकि इसे याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से चुनौती नहीं दी थी.
सीजेआई ने कहा, जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं. इसकी उद्घोषणा के तहत राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिया गया हर निर्णय कानूनी चुनौती के अधीन नहीं हो सकता. इससे अराजकता फैल सकती है.
बता दें कि 5 अगस्त 2019 को केंद्र की मोदी सरकार ने राष्ट्रपति की अनुमति से जम्मू-कश्मीर को प्राप्त धारा 370 और 35 ए को संसद में बिल लाकर समाप्त कर दिया था। मोदी सरकार के इस फैसले को कश्मीर के कई संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. जिस पर सीजेआई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 5 सितंबर को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के लोग न तो उम्मीद खोने वाले हैं और न ही हार मानने वाले हैं. सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए हमारी लड़ाई बिना किसी परवाह के जारी रहेगी. यह हमारे लिए रास्ते का अंत नहीं है. वहीं फैसला आने से पहले ही विरोधी पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कुछ लड़ाई हारने के लिए लड़ी जाती है. कपिल सिब्बल ने सोमवार को फैसला आने से पहले एक्स पर लिखा, न्यायालयों, कुछ लड़ाइयाँ हारने के लिए लड़ी जाती हैं. इतिहास को पीढ़ियों के जानने के लिए असुविधाजनक तथ्यों को दर्ज करना होगा. संस्थागत कार्रवाइयों के सही और गलत होने पर आने वाले वर्षों में बहस होती रहेगी. इतिहास ही अंतिम निर्णायक है.